पन्ना के कृष्ण भक्त हिम्मत दास ..पन्ना के कृष्ण भक्त हिम्मत दास ..
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भक्ति कथा ......
श्रद्धा और भक्ति
पन्ना के कृष्ण भक्त हिम्मत दास ............
पूर्व समय में मध्य प्रदेश की राजधानी पन्ना थी, पन्ना छत्तरपुर और सदना के बीच में पड़ता है …पन्ना में रत्नो की खदाने थी.. जहाँ खुदाई में हीरे मोती आदि निकलते थे।
पन्ना से पाँच कोस की दूरी पर गाँव बराय में बाँके बिहारी जी के एक परम भक्त रहा करते थे, नाम था हिम्मत दास जी । एक दिन हिम्मत दास जी ने मन में ठान लिया कि प्रतिदिन पन्ना के बांके बिहारी जी के दर्शन करने है, फिर क्या था, बाँके बिहारी के भक्त भला कहां रुकते हैं।
प्रतिदिन पाँच कोस चल कर आते, हाथ में खड़ताल बजाते बजाते आते, दर्शन करते और फिर अपने गाँव बराय में वापस लौट जाते । पाँच कोस दूरी पर…कीर्तन करते करते आना …ठाकुर जी के दर्शन करना ..ये उनका प्रतिदिन का नियम हो गया…
एक दिन रास्ते में हिम्मत दास जी को चार चोर मिले… हिम्मत दास जी ठहरे बांके बिहारी के फक्कड़ भगत उनके पास खडताल के अतिरिक्त कुछ नहीं था… चोरो ने उनसे उनकी खड़ताल ही छीन ली,बोले, “बताओ और क्या है”?’
हिम्मत दास बोले, “हरी का नाम है… लेना है तो ले लो”!’
चोरो ने देखा की भगत के पास कुछ नहीं तो खडताल छीन के चले गए…
हिम्मत दास जी बोले, “ठाकुर जी आपकी इच्छा! ये क्या लीला दिखा रहे हो, तुम ही जानो महाराज”!’
इतने में चोर पीछे से आवाज देने लगे की महाराज जी रुकिए, हमसे बड़ा अपराध हो गया, हमें क्षमा कर दीजिए...
हिम्मत दास जी पीछे गए..पूछा “क्या हो गया”?’
उन्होंने देखा वह चारो चोर अंधे हो चुके थे।
चोर बोले, हमें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है …आँखे फटी है, लेकिन दिखता कुछ नहीं… हमें क्षमा कर दीजिए महाराज..’
हिम्मत दास जी ने ठाकुर जी से प्रार्थना की ..
चोरन से दिलवाओ खडताल…चोरन से ना मुख मोड़ीयो ओ नंदलाल…चोरन को भी करो निहाल !
चोरो की दृष्टी वापस आगयी ! हिम्मत दास जी ठाकुर जी के कीर्तन में डूब गये।
चोरो से निपटने में हिम्मत दास जी को देर हो गयी… पन्ना के मंदिर पहुंचे तो सांध्य की आरती हो चुकी थी.. तथा मंदिर के पट बंद कर दिए गए थे…हिम्मत दास जी वहाँ ही बैठ गए..इतने दिन का नियम था..अब दर्शन के बिना कैसे खाउंगा … कैसे जाउंगा…
वो प्रेमी भक्त भाव विह्वल होकर बंद कपाट को ही निहारने लगा और वहीं बैठ कर कीर्तन गाने लगा। अपने निष्काम भक्त की करुण पुकार सुन कर ठाकुर जी द्रवित हो गये और तुरंत ही भक्त के पास दौड़े चले आए, एक झटके से बंद कपाट खुल गए!… भगवान मूर्ति में से प्रत्यक्ष प्रगट हो गए…
ठाकुर जी को अपने सम्मुख देख वह भक्त अपनी सुध-बुध खो बैठा, उसकी वाणी से शब्द निकलने बंद हो गए, आँखों से अश्रुओं की धार बह निकली, वह बस एक टक ठाकुर जी को निहारता रह गया। दर्शन से गदगद होने पर बांके बिहारी जी अंतर्धान हो गए… मंदिर के महंत को जब इस चमत्कार का पता चला तो वह हिम्मत दास जी को दंडवत प्रणाम करते हुए बोला की, “बाबा आप रोज पाँच कोस चल कर आते हो … कठिनाई होती होगी.. यही निवास करो….मंदिर की आय से अभ्यागत साधुओ की सेवा होगी……सेवा स्वीकार करो…’
हिम्मत दास जी अब पन्ना में निवास करने लगे.. प्रीति पूर्वक साधुओ की सेवा होती… साधू मंडली आने से मंदिर का व्यय भी अधिक होने लगा जो मंदिर की आय से अधिक था।.. एक दिन साधुओं की एक बड़ी मण्डली आई.. हिम्मत दास जी उनके भोजन का प्रबंध करने के उद्देश्ये से सामग्री लेने एक बनिए के पास गए … बोले सेठ जी साधुओं की एक बड़ी मंडली आई है उनके भोजन का प्रबंध करना है, कुछ सामग्री की आवश्यकता है, बनिए ने उनको अपने पास बैठाया और अपना बही-खाता देख कर बोला " भगत जी सामग्री तो में दे दूंगा, किन्तु आपका बकाया बहुत अधिक हो गया है, पहले आप पिछला बकाया चुका दो और आगे का सामान ले जाओं"
अब हिम्मत दास जी के पास इतना धन कहा-- हिम्मत दास जी घर वापस लौटे… पत्नी को कहा, साधुओ की मंडली आई है… बनिया सामग्री नहीं देता…पत्नी ने बोला, “संत की सेवा है, आप चिंता ना करें, मेरी यह नथनी है इसको ले जाइये, उसने तुरंत ही अपनी नथनी उत्तर उतार कर दे दी । हिम्मत दास जी बनिए के पास गए, पत्नी की नथनी देकर बोले , “ये तू गिरवी रख ले… आज के लिए सामग्री दे दे….’हिम्मत दास जी बनिए से सामग्री लेकर आये, पत्नी ने साधू मंडली को भोजन कराया…
इधर बांके बिहारी ने सोंचा यह मेरा कैसा भक्त है, इसने अपना सब कुछ मेरे नाम कर दिया, अब इसकी पत्नी के पास उसकी एक मात्र नथनी भी नहीं रही । यदि मेरे भक्तो का सब कुछ चला जाये तो में ईश्वर किस बात का?
..ठाकुर जी भक्त हिम्मत दास जी का रूप लेकर बनिए के पास पहुंचे .. बोले कितने पैसे है..ले लो… और नथनी वापस दे दो … बनिए से भगवान भक्त की पत्नी की नथनी वापिस ले आये…हिम्मत दास जी की पत्नी को नथनी वापस दे दी .. पत्नी बोली, “ये कैसे लाये?’
बांके बिहारी बोले, “जैसे भी लाया, पहन ले!’
भक्त की पत्नी बोली,! "मेरे हाथ तो गोबर में सने हैं आप ही पहना दीजिए"!!’ अंतरयामी भगवान नथनी पहना के वहां से चले गए..
हिम्मत दास जी आये , पत्नी को देखा की नाक में नथनी पहनी है… पत्नी से पूंछा "यह नथनी कहाँ से आई" पत्नी बोली "आप ठीक तो हैं, "यह कैसी बातें कर रहे हैं, आप ही ने तो लाकर दी है, आप ही ने तो अपने हाथ से पहनाई है" …
हिम्मत दास जी पत्नी को अवाक देखते रह गए वह समझ गए की मैं तो नहीं आया!… भक्तो के पालन हार मेरे भगवान्, मेरे बांके बिहारी ही आये होंगे…
भागे भागे बनिए के पास गए! … पूंछा की मेरा जैसा दूसरा आदमी आया था क्या? …
बनिया बोला, “आप को क्या हो गया? अभी कुछ देर पहले आप ही तो आये थे, सारे बहीखाता का हिसाब कर दिया … हस्ताक्षर भी है आप के…!’
हिम्मत दास जी जान गए भगवान ही आ कर मेरी पत्नी को नथनी देकर गए है..
सत्य ही है… जो भगवान् का हो कर जीता है , उस को कदम कदम पर भगवान सहायता करते है!
हिम्मत दास जी की श्रद्धा ऐसी उच्च कोटि की थी........ उन का ह्रदय ऐसा पवित्र हुआ कि अपने जीवन में भक्त राज हिम्मत दास जी को कई अनुभव हुए… ठाकुर जी के सामने एक टक देखते..प्रीति पूर्वक प्रभु के गीत गाते… एक दिन ठाकुर जी प्रगट हो कर बोले … अब वृन्दावन में दर्शन होंगे …
हिम्मत दास जी वृन्दावन चल दिए… पन्ना से चलते चलते 7 वे दिन वृन्दावन के बांके बिहारी के मंदिर में पहुंचे…पंडो को तो मूर्ति दिखती..लेकिन भक्त राज हिम्मत दास को प्रत्यक्ष भगवान दिखते!
जहा ऐसे पवित्र शुध्द ह्रदय वाले संतो का निवास होता है, उन के चरण पड़ते है …उस भूमि पर भगवतिय आनंद, भगवतिय प्रीति , भगवत माधुर्य चमचम चमकने लगता है…
… ठाकुरजी सर्व व्याप्त है, उन्ही की चेतना सभी में है..सभी ठाकुर जी का रूप है … भगवान चेतन रूप, ज्ञान रूप, आनंद रूप है… भगवान प्राणी मात्र के सुहुर्द है …
जो भगवान की कथा सुनता है, भगवान उस की व्यथा मिटाते है ….जो भगवान की कथा नहीं सुनते, वो ही व्यथा में है… जिसके जीवन में भगवान की कथा है, वो कभी व्यथित नहीं होता…
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हरे कृष्णा
जय जय श्रीराधे,ॐ शांति 🙏🌹🇲🇰🚩
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