मैं" का अर्थ

WhatsApp 📞       👇 *+919893236423*
🇲🇰 प्रेरणादायी कहानियाँ 🇲🇰

🌹🌿🌹🌿🌹🌿 *"मैं" का अर्थ
*🌹🌿🌹🌿🌹🌿

भक्तो 🌹मैं🌹 का बहुत सुंदर विश्लेषण

🌹🌿 'मैं' का अर्थ है परमात्मा की तरफ पीठ करके खड़ा होना। प्रेमी की तरफ पीठ करके खड़ा होना। मैं का अर्थ है अकड़। हम कहते हैं कि परमात्मा हम से दूर है। वह हमारी सुनता नहीं। पर सच बात तो यह है कि परमात्मा न कभी हमसे दूर न था, न है और न होगा। सिर्फ हमने कभी मुड़कर देखा ही नहीं। और फिर, परमात्मा तो हमारे चारों तरफ एक खुशबू की तरह, एक रोशनी की तरह हर वक्त मौजूद है। अगर कोई कमी है, तो यह कि हमारे पास उस सुगंध को सूंघने की क्षमता ही नहीं है। उस रोशनी को देखने वाली आंखें ही नहीं हैं।🌹🌿

🌹🌿कभी सच्चे मन से थोड़ा सा गुनगुनाने की कोशिश करोगे, तो आवाज उस तक पहुंच जाएगी। जरा सा मुड़कर देखोगे, तो उस प्रभु की झलक दिख जाएगी। मगर हमारा अहंकार या हमारा यह 'मैं' कहता है- मुड़कर मत देखना। कहता है कि उस परम पिता को पुकारना मत। अहंकार हमें भ्रम के तमाम जालों में अटकाता है। यह हमारे हाथ-पांव को सांसारिक बातों के सूक्ष्म जालों में बांध देता है। इंसान और परमात्मा के बीच मैं या अहंकार के सिवा और कोई बाधा है ही नहीं। मैं की दीवार हटाते ही हम उस दैवीय शक्तियों के रूबरू होते हैं।🌹🌿

🌹🌿परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया। उसने हमें हर तरह का सुख-साधन दिया, लेकिन मैं के वशीभूत होकर हमने सब कुछ खो दिया। मैं ही सारे बंधनों का जाल है। अज्ञानी लोग तो कभी भी मैं और मेरा के व्यूह को तोड़ ही नहीं पाते। मेरा शरीर, मेरा घर, मेरा बेटा, मेरी बेटी, मेरी पत्नी, मेरी दौलत, मेरा पद, मेरी इज्जत, मेरा नाम, आदि-आदि। यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होता।

लेकिन कई बार बड़े-बड़े ज्ञानी-दानी-ध्यानी भी 'मैं' के बारीक तंतुओं में फंस जाते हैं। बहुत धीमे से कभी उनकी बुद्धि का अहंकार, कभी विद्या का अहंकार, कभी ज्ञान का अहंकार, कभी दान का अहंकार, कभी जप-तप का अहंकार, कभी भक्ति का अहंकार उनके मन में अपनी जगह बना लेता है।

उन्हें इसका पता नहीं चलता, लेकिन ऐन मौके पर यह अहंकार अपना सिर उठाता है और तब अचानक वे पाते हैं कि वे खुद परमात्मा से कितने दूर हो गए हैं। कई बार अत्यधिक सात्विक लगने वाले का यह अहंकार भी मनुष्य को काफी नीचा गिरा देता है। आप दानवीरों के द्वंद्व को देखो, ज्ञानियों के आपसी बैर को देखो, भक्तों की आपसी होड़ देखो, तो पता चलेगा कि उनके अंदर भी मैं या अहंकार की आग जल रही है, और इस आग में उनका सब कुछ अर्जित किया हुआ भस्म हो रहा है।🌹🌿

🌹🌿बेहद सावधान रहने की जरूरत है। हमें हर पल सचेत होकर अपने अहं को परे धकेलते रहना है। यह सतत क्रिया है। जरा सी चूक भी सारे किए-धरे पर पानी फेर सकती है। सदियों से तमाम भक्तगण अपने-अपने इष्ट देवी-देवताओं की स्तुति गाते रहे हैं। समय-समय पर उन्हें यथाशक्ति भेंट चढ़ाते रहे हैं। आज भी तमाम देवी-देवताओं के दरबारों में भेंट-पूजा चढ़ाई जाती है। ऐसा करके हम समझते हैं कि इनसे देवी-देवता प्रसन्न हो जाएंगे। पर असल में हमारी पूजा अधूरी है

स्वजनों इस तरह हम परमात्मा के आशीर्वाद के हकदार नहीं बन पाते हैं। क्यों? क्योंकि परमात्मा को जिस चीज की भेंट चाहिए, वह तो मैं यानी अहंकार है। जब तक हम अपने मैं को, अपने अहंकार को परमात्मा के चरणों में अर्पित नहीं करेंगे, तब तक हम उसके दरबार से खाली हाथ ही लौटते रहेंगे।
🇲🇰 प्रेरणादायी कहानियाँ 🇲🇰
 WhatsApp 📞       👇
 9⃣8⃣9⃣3⃣2⃣3⃣6⃣4⃣2⃣3⃣🌹🌿
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

Http://nayisoch2020.blogspot.in/?m=1

🌹🌿🌹🌿. ❤💘.
🌹🌿🌹🌿. *🎸 'जय श्री राधे'🎸* 🌹🌿🌹🌿

Comments

Popular Posts