जीवन का असली उद्देश्य परमात्मा को पाना है।

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" जीवन का असली उद्देश्य परमात्मा को पाना है। "

 पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में 26 जनवरी से 2 फरवरी प्रिंसेस श्राईन,पैलेस ग्राउंड,बंगलुरु में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।

 महाराज श्री ने कथा का प्रारम्भ एक सुन्दर भजन के साथ किया  -  " तेरी बदल जाये तक़दीर तू राधे - राधे बोल ज़रा। "  जब तक भगवान् की कृपा नहीं होती तब तक हमे भागवत सुनने का सौभाग्य भी प्राप्त नहीं होता। हम जीवन में हर छोटी - छोटी  बात की योजना बनाते है। जैसे - खाना क्या है ?  पढ़ना क्या है , कमाना कैसे है , परिवार कैसे चलाये आदि  पर ये जीवन जो परमात्मा ने हमे दिया है हम उसको वास्तव में कैसे जीये ये योजना नहीं बनाते।  भौतिक  जीवन की योजना में असली जीवन के उदेश्य को भूले बैठे है। आप अपने जीवन के असली उदेश्य को जाने और आज से जब तक आपका जीवन है भगवान की कृपा पाने के लिए प्रयास करे। क्योकि मानव जीवन का असली उदेश्य केवल परमपिता परमात्मा को पाना ही है

    कल के कथा क्रम को याद कराते हुए कहा कि राजा परीक्षित को श्राप लगा की सातवें दिन उनकी मृत्यु हो जाएगी।  वैसे श्राप तो हम सब को भी सातवे दिन मृत्यु का लगा है क्योकि भगवान ने आठवां दिन नहीं बनाया तो जन्म तो हमारा हो चुका और मृत्यु सातवे दिन में से किस दिन होगी यह किसी को पता नहीं तो अपने कर्मो अच्छा बनाये ताकि , मृत्यु का भय समाप्त हो जाये। अपनी मृत्यु को सातवे दिन जानकर राजा परीक्षित ने  उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया।राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये...

अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।

भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। महाराज श्री ने बताया की संध्या समय हमे शास्त्र अनुसार कुछ बातों को निषिद्ध किया गया है भोजन , स्वाध्याय , निंद्रा और स्त्री -पुरुष मिलन नहीं करना चाहिए।

        कारण क्या है इन बातो को मना करने का अगर आप संध्या समय भोजन करेंगे तो वो आपका उदर खराब करेगा , स्वाधयाय करने से याद किया भूल जाते है , संध्या समय सोने से घर में दरिद्रता आती है और संध्या समय स्त्री- पुरुष का मिलान होने पर निश्चित रूप से दुष्ट संतति ही जन्म लेती है।  तो हमको भी अपने धर्म की बातो का पालन करना चाहिए क्योकि समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।

        ।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।

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