बीज मनुष्य >>>>>फूल परमात्मा


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            (बीज मनुष्य >>>>>फूल परमात्मा)

आमतौर से लोग समझते रहते हैं कि भगवान कोई व्यक्ति है, जिससे हमारा मिलन होगा, जिसका हम साक्षात्कार करेंगे। यह बिलकुल ही असत्य है।

भगवान कोई व्यक्ति नहीं है, जिससे आपकी मुलाकात होगी और आप कोई इंटरव्यू लेंगे। भगवान एक अवस्था है। जैसे ही आप उस अवस्था के करीब पहुंचेंगे, आप भगवान होते जाएंगे। जिस दिन आप उस अवस्था में पूरे डूब जाएंगे, आप भगवान हो जाएंगे। वहाँ कोई बचेगा नहीं, जिससे आप मुलाकात लेंगे। आप ही भगवान हो जाएंगे।

भगवान के दर्शन का अर्थ भगवान हो जाना है, क्योंकि भगवान एक पद है, वह एक अवस्था है। वह चेतना की आखिरी ऊंचाई है। वह आपके भीतर ही छिपे हुए बीज का आखिरी रूप से खिल जाना है। वह जो छिपा है, उसका प्रगट हो जाना है।

तो भगवत्ता एक अवस्था है। इसलिए अच्छा है, भगवान शब्द से भी ज्यादा अच्छा शब्द है भगवत्ता, क्योंकि उससे अवस्था का पता चलता है, न कि व्यक्ति का—दिव्यता, गॉडलीनेस। बजाय गॉड, ईश्वर कहने के बजाय, भगवान कहने के बजाय, ब्रह्म कहने के बजाय भगवत्ता, ब्रह्मपद ज्यादा उपयुक्त है ।

लेकिन आदमी की कठिनाई है। क्योंकि आदमी की जो भाषा है, वह सभी चीजों को प्रतीक में, संकेत में बदल लेती है। हम सभी चीजों को बदल लेते हैं।

#अभी भारत में आजादी की लड़ाई चलती थी तो घर—घर में फोटुएं टंगी थीं भारतमाता की। वह कहीं है नहीं। लेकिन फोटुएं टंगी थीं—माता के पैरों में जंजीरें पड़ी हैं, हाथ में तिरंगा झंडा है। भारतमाता! और भारतमाता की जय बोलते—बोलते अनेक भूल ही गए होंगे कि भारतमाता जैसा कोई कहीं कुछ है नहीं। प्रतीक है। प्रतीक प्यारा है, काव्यात्मक है, लेकिन तथ्य नहीं है।#

भगवान भी बस प्रतीक है। वहां कोई बैठा हुआ भगवान नहीं है। आप ही हो जाएंगे। इसलिए भगवान की खोज असल में भगवान होने की खोज है। और जब तक कोई भगवान न हो जाए, तब तक जीवन में यह खोज जारी रहती है। रहेगी ही। क्योंकि इसी की तलाश है, इसी की प्यास है।

जैसे बीज जमीन में पड़ा हो तो तड़पता है, कि वर्षा हो तो फूट जाए,और अंकुरित हो। रास्ते में कंकड़—पत्थर पड़े हों तो उनको भी, कोमल—सा बीज भी उनको हटाकर या उनसे बचकर निकलने की कोशिश करता है। फूटता है, जमीन पर आता है, उठता है आकाश की तरफ। और जब तक फूल न खिल जाएं, तब तक बीज की दौड़ जारी रहती है।

आदमी भी एक बीज है। कहें कि वह भगवान का बीज है। भगवत्ता का बीज है। और जब तक टूटकर भगवान का फूल न खिल जाए, तब तक बेचैनी जारी रहेगी। यह बेचैनी सृजनात्मक है, क्रिएटिव है। इस बेचैनी के बिना आप तो भटक जाएंगे।

इसलिए धन्य हैं वे, जो आध्यात्मिक बेचैनी से भरे हुए हैं। अभागे हैं वे, जिनको कोई बेचैनी नहीं। जो कहते हैं, हमें कुछ जरूरत ही नहीं है।

मेरे पास कई लोग आते हैं, वे कहते हैं, ध्यान की क्या जरूरत है? क्या करना है खोजकर भगवान को? धर्म से क्या लेना—देना है?

इस पृथ्वी पर इनसे ज्यादा अभागा और कोई भी नहीं है। ये बीज हैं जो कह रहे हैं—क्या करना है फूटकर? क्या होगा अंकुर बनकर? और क्या फायदा है आकाश में उठने का? और सूरज की यात्रा से क्या मिलने वाला है? तो ये बीज बीज ही रह जाएंगे, कंकड़—पत्थर की तरह पड़े रहेंगे। दुखी होंगे। दुखी हैं, लेकिन उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि दुख क्या है।

मेरी दृष्टि में एक ही दुख है जीवन का—आप जो होने को पैदा हुए हैं, अगर न हो पाए, तो आप दुखी होंगे। और एक ही आनंद है जीवन का कि आप जो होने को पैदा हुए हैं, हो गए। नियति पूरी हो गई। वह जो छिपा था, अनछिपा हो गया, प्रगट हो गया। और जब तक आप वही न हो जाएं जो होने की आपकी क्षमता है—और वह क्षमता भगवान होने की है—तब तक जीवन से पीड़ा, संताप का अंत नहीं है।
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