बुढ़ापा सुन्दर है जवानी से ज्यादा"


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*"बुढ़ापा सुन्दर है जवानी से ज्यादा"*
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"सुन्दरता और कुरुपता का तालमेल बिठाना ही वैराग्य और धार्मिकता का जन्म है।"
"एक्सरे कर लेना ,जब मन मे कोई चमडी बहुत प्रितीकर लगे"
"सुन्दरतम स्त्री भी एक दिन कुरुप हो जाती है।"
इस संसार में सभी तो कुरूप है, इस संसार में हर चीज तो सड़ जाती है, इस संसार में हर चीज तो कुरूप हो जाती है, सुंदरतम स्त्री भी एक दिन कुरूप हो जाती है।
और जवान से जवान आदमी भी एक दिन मुर्झा जाता है, सुंदर से सुंदर देह भी तो एक दिन चिता पर चढ़ा देनी पड़ेगी। करोगे क्या? यहां सुंदर है क्या? इस जगत की असारता को ठीक से पहचानो।

इस जगत की व्यर्थता को ठीक से पहचानो। ताकि इसकी व्यर्थता को देखकर तुम भीतर की सीढ़ियां उतरने लगो। सौंदर्य भीतर है, बाहर नहीं। सौंदर्य स्वयं में है। और जिस दिन तुम्हारे भीतर सौंदर्य उगेगा, उस दिन सब सुंदर हो जाता है। तुम जैसे, वैसी दुनिया हो जाती है।

जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि! तुम सुंदर हो जाओ, और तुम्हारे सुंदर होने का अर्थ, कोई प्रसाधन के साधनों से नहीं; ध्यान सुंदर करता है। ध्यान ही सत्यं, शिवं, सुंदरम् का द्वार बनता है। जैसे-जैसे ध्यान गहरा होगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे, तुम्हारे भीतर एक अपूर्व सौंदर्य लहरें ले रहा है। इतना सौंदर्य कि तुम उंडेल दो तो सारा जगत सुंदर हो जाए.........

एक्सरे कर लेना ,जब मन मे कोई चमडी बहुत प्रितीकर लगे

बुद्ध को वैराग्य उत्पन्न होने की जो बड़ी कीमती घटना है, वह मैं आपसे कहूं। बुद्ध के पिता ने बुद्ध के महल में उस राज्य की सब सुंदर स्त्रियां इकट्ठी कर दी थीं। रात देर तक गीत चलता, गान चलता, मदिरा बहती, संगीत होता और बुद्ध को सुलाकर ही वे सुंदरियां नाचते-नाचते सो जातीं। एक रात बुद्ध की नींद चार बजे टूट गई। एर्नाल्ड ने अपने लाइट आफ एशिया में बड़ा प्रीतिकर, पूरा वर्णन किया है।

चार बजे नींद खुल गई। पूरे चांद की रात थी। कमरे में चांद की किरणें भरी थीं। जिन स्त्रियों को बुद्ध प्रेम करते थे, जो उनके आस-पास नाचती थीं और स्वर्ग का दृश्य बना देती थीं, उनमें से कोई अर्धनग्न पड़ी थी; किसी का वस्त्र उलट गया था; किसी के मुंह से घुर्राटे की आवाज आ रही थी; किसी की नाक बह रही थी; किसी की आंख से आंसू टपक रहे थे; किसी की आंख पर कीचड़ इकट्ठा हो गया था।

बुद्ध एक-एक चेहरे के पास गए और वही रात बुद्ध के लिए घर से भागने की रात हो गई। क्योंकि इन चेहरों को उन्होंने देखा था; ऐसा नहीं देखा था। लेकिन ये चेहरे असलियत के ज्यादा करीब थे। जिन चेहरों को देखा था, वे मेकअप से तैयार किए गए चेहरे थे, तैयार चेहरे थे। ये चेहरे असलियत के ज्यादा करीब थे। यह शरीर की असलियत है।

जीवन के जो चेहरे हमें दिखाई पड़ते हैं, वे असलियत नहीं हैं। इसलिए बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे, जब तुम्हें कोई चेहरा सुंदर दिखाई पड़े, तो आंख बंद करके स्मरण करना, ध्यान करना, चमड़ी के नीचे क्या है? मांस। मांस के नीचे क्या है? हड्डियां। हड्डियों के नीचे क्या है? उस सब को तुम जरा गौर से देख लेना। एक्सरे मेडिटेशन, कहना चाहिए उसका नाम। बुद्ध ने ऐसा नाम नहीं दिया। मैं कहता हूं, एक्सरे मेडिटेशन! एक्सरे कर लेना, जब मन में कोई चमड़ी बहुत प्रीतिकर लगे, तो दूर भीतर तक। तो भीतर जो दिखाई पड़ेगा, वह बहुत घबड़ाने वाला है।

जैसी शरीर की असलियत है, वैसे ही सभी सुखों की असलियत है। और एक-एक सुख को जो एक्सरे मेडिटेशन करे, एक-एक सुख पर एक्सरे की किरणें लगा दे, ध्यान की, और एक-एक सुख को गौर से देखे, तो आखिर में पाएगा कि हाथ में सिवाय दुख के कुछ बच नहीं रहता। और जब आपको एक सुख की व्यर्थता में समस्त सुखों की व्यर्थता दिखाई पड़ जाए, और जब एक सुख के डिसइलूजनमेंट में आपके लिए समस्त सुखों की कामना क्षीण हो जाए, तो आपकी जो स्थिति बनती है, उसका नाम वैराग्य है।

वैराग्य का अर्थ है, अब मुझे कुछ भी आकर्षित नहीं करता। वैराग्य का अर्थ है, अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। वैराग्य का अर्थ है, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल जीना चाहूं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे पाए बिना मेरा जीवन व्यर्थ है।

वैराग्य का अर्थ है, वस्तुओं के लिए नहीं, पर के लिए नहीं, दूसरे के लिए नहीं, अब मेरा आकर्षण अगर है, तो स्वयं के लिए है। अब मैं उसे जान लेना चाहता हूं, जो सुख पाना चाहता है। क्योंकि जिन-जिन से सुख पाना चाहा, उनसे तो दुख ही मिला। अब एक दिशा और बाकी रह गई कि मैं उसको ही खोज लूं, जो सुख पाना चाहता है। पता नहीं, वहां शायद सुख मिल जाए। मैंने बहुत खोजा, कहीं नहीं मिला; अब मैं उसे खोज लूं, जो खोजता था। उसे और पहचान लूं, उसे और देख लूं। वैराग्य का अर्थ है, विषय से मुक्ति और स्वयं की तरफ यात्रा।

बुढ़ापा सुन्दर है जवानी से ज्यादा
बुढापा आता है, सभी का आता है। उससे घबड़ाओ मत! बुढापे को समझ का समय बनाओ। क्योंकि बच्चे अबोध हैं, उन्हें कोई अनुभव नहीं, भोले-भाले हैं, लेकिन अनुभव-रिक्त हैं।

उनका भोला-भालापन तो खत्म होगा, खराब होगा। वे तो उठेंगे, जिंदगी में जाएंगे। और जिंदगी व्यभिचारी है। वे बिगड़ेंगे। बिगड़ना ही पड़ेगा। वह बिगड़ना जरूरी पाठ है।

फिर जवान हैं। जवानों का मन तो बहुत- सी उत्तेजनाओं से भरा है। बहुत कुछ कर लेने का उनके दिमाग में फितूर है। जवानी एक फितूर है। जवानी एक विक्षिप्तता है, एक जोश, एक जुनून। तो अभी तो वे आकाश में उड़ रहे हैं। जवान, अभी उनके पैर जमीन से नहीं लगते। लगेंगे उनके पैर। क्योंकि जल्दी ही पता चलेगा, जवानी तो एक बुखार थी, आई और गई, एक उत्तेजना थी, एक उत्ताप था, हम नाहक ही उसमें भूल बैठे, अपने को कुछ का कुछ समझ लिया।

मैंने सुना है कि एक लोमड़ी सुबह-सुबह निकली, सूरज के उगते प्रकाश में उसकी बड़ी छाया बनी–लम्बी छाया! उसने छाया की तरफ देखा और कहा, आत तो नाश्ते के लिए कम से कम एक ऊंट की जरूरत पड़ेगी–इतनी बड़ी हूं! दिन भर खोजती रही, दोपहर हो गई, कुछ मिला नहीं। सूरज सिर पर आ गया। उसने फिर देखा अपनी छाया की तरफ, वह सिकुड़कर बड़ी छोटी हो गई। उसने कहा, अब तो एक चींटी भी मिल जाए तो भी काम चलेगा!

जवानी तो एक नशा है, छाया बड़ी लंबी मालूम होती है। हर आदमी सिकंदर होना चाहता है। हर जवान सिकंदर होने के सपने देखता है। वह सपनों का समय है।

बुढापा बड़ा बहूमूल्य है, बच्चों जैसा अनुभव हीन नहीं है, सारा अनुभव हो गया, जवानों जैसी विक्षिप्तता नहीं है! वह जोश-खरोश, वह पागलपन गया! चीजें ज्यादा थिर हो गई हैं। दृष्टि ज्यादा थिर हो गई है। समझ गहरी हुई है। इसका उपयोग करो।

बुढापा सुंदर है–जवानी से ज्यादा। तभी तो परमात्मा जवानी के बाद बुढापा देता है, वह ऊपर की सीढ़ी है। जवानी के अनुभव के बाद बुढापा देता है, उसकी श्रेणी बहुत ऊंची है। बुढापे के लिए तैयार होओ। उसका उपयोग करो।

लेकिन तकलीफ क्या खड़ी होती है, कि बूढे तुम हो जाते हो, लेकिन खोपड़ी में जवानी के सपने भरे रहते हैं। तो अड़चन होगी। अब अगर एक बूढा व्यक्ति ऐसे प्रेम की आशा करता हो जैसा एक जवान को मिलता है, तो वह अड़चन में पड़ेगा। बूढे आदमी को और सौम्य प्रेम के मार्ग खोजने पड़ेंगे। उत्तेजना से भरे हुए नहीं। उसे वात्सल्य को जगाना पड़ेगा। उसका प्रेम वात्सल्य होगा। उसके प्रेम में करुणा होगी, शीतलता होगी, शोरगुल नहीं होगा, शांति होगी। उसका प्रेम करुणा जैसा होगा।

बुढापे से घबड़ाओ मत। वह तो इस जिंदगी का आखिरी सोपान है, उसके बाद ही तो परम घड़ी आती है मृत्यु की। घबड़ाओ मत कि बुढापा आ गया, अब क्या होगा!

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