विनम्रता .......

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(((( विनम्रता ))))
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एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया।
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नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ।
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एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा - बताओ ! मैं तुम्हारे लिए क्या क्या लाऊँ ?
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मकान, पशु, मानव, वृक्ष आदि जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ।
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समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना चाहती हो तो, थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ।
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नदी ने कहा बस ! इतनी सी बात ! अभी लेकर आती हूँ।
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नदी ने अपने जल का पुरा जोर लगाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार जोर लगाया पर असफलता ही हाथ लगी।
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आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली। मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती।
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जब भी घास को उखाड़ने के लिए पुरा जोर लगाती हूं तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ उपर से गुजर जाती हूं।
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समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला -
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जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते है, ये आसानी से उखड जाते है, किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आंधी तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकता।
साभार :- बाल संस्कार

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 ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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