झूठ के पांव


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               झूठ के पांव

कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते। पर क्या आप जानते हैं कि झूठ के पांव नहीं बल्कि पंख होते हैं।
सत्य एक स्थान पर टिका हुआ होता है। सत्य पर काल व स्थान का कोई प्रभाव नहीं पडता। सत्य को कभी भी और किसी भी स्थान पर बोला जाए, उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता।
पर झूठ हर समय और स्थान के अनुसार बदलता रहता है। एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ भी बोले जाएं तो भी वह सच नहीं बन सकता।
दो व्यक्ति एक सड़क पर साइकिल पर सवार होकर जा रहे थे। अचानक चौराहे पर मुड़ते समय *एक* की साइकिल *दूसरे* से टकरा गई और दोनों सड़क पर गिर पड़े। वे उठ कर एक दूसरे को दोष देने लगे।
*तीसरे* आदमी ने यह दृश्य देखा तो उसने *चौथे* को बताया कि चौराहे पर लड़ाई हो रही है।
*चौथे* ने *पांचवें* से कहा कि चलो,  चल कर देखते हैं।
 *छठे* ने कहा कि मैं भी साथ चलता हूँ।
वहाँ जाकर देखा तो पता चला कि ये लोग तो दोनों पड़ोसी हैं। अली और आनंद।
*सातवें* ने उनके नाम सुने तो उसने *आठवें* को कहा कि चौराहे पर एक हिंदू और मुसलमान में लड़ाई हो रही है।
*आठवें* ने *नौवें* को कहा कि जल्दी भाग लो। हिंदू- मुसलमान का दंगा हो गया है।
 *नौवें* ने *दसवें* को कहा कि पुलिस को सूचना दे दो, कहीं दंगा भड़क न जाए।
 खबर आग की तरह फैल गई। दस से सौ और सौ से हजारों लोग चौराहे की तरफ चल पड़े।
सारे हिंदू आनंद का पक्ष लेने लगे और मुसलमान अली की तरफ हो गए।
पुलिस आई और दोनों को पकड़ कर ले गई।
*शहर में कर्फ्यू लग गया*।
पूछताछ के बाद पता चला कि ये दोनों पड़ोसी होने के साथ साथ अच्छे दोस्त भी हैं। वे तो आपस में समझा रहे थे कि हमें सड़क पर सावधानी से चलना चाहिए। पता नहीं किसी तीसरे व्यक्ति ने ही यह दंगे वाली बात फैलाई है।
 *तीसरे व्यक्ति को खोजने की कोशिश की गई पर वह आज तक नहीं मिला*।

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