सत्य कथा


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------ *सत्य कथा* ------

एक बहुत ही गरीब सत्संगी था,
जो अपने सत्गुरु पर बहुत भरोसा और बेइंतेहा प्यार करता था,
और सुबह-शाम भजन-सिमरन किया करता था।

वो आश्रम में सेवा किया करता था।
और उसकी जब भी और जो भी सेवा होती,
वो खुशी-खुशी से सेवा निभाया करता था।

उस सत्संगी की बिटिया की शादी की तारीख उस दिन की पक्की हो गयी,
जिस तारीख में उसको आश्रम में सेवा के लिए जाना था।

वो सत्संगी नितनेमी था,
व बिना नागा समय-समय पर भजन-सिमरन किया करता था।
और अब ये सोचकर,
कि बिटिया के विवाह में अभी काफी दिन हैं,
वो अपनी सेवा व भजन-सिमरन नियमित रूप से करता रहा।

अब शादी का दिन भी आ गया।
पर उसने घर पर यह बात किसी को भी नहीं बताई,
कि शादी वाली तारीख में भी उसकी सेवा लगी हुई है।
क्यूंकी वो जानता था कि उसकी पत्नी उसे सेवा में जाने नहीं देगी।
इसलिए वह घर पर बिना किसी को बताये चुप-चाप और समय से बहुत पहले ही आश्रम पहुंच गया।
वहां उसने सोचा- अभी सत्संग में तो कुछ समय है,
मैं भजन-सिमरन पर ही बैठ लेता हूँ।
और वो भजन-सिमरन पर बैठ गया।
जब सत्संग का समय हुआ,
तो अपने मालिक की सेवा में जुट गया।
और अपनी सेवा पूरी करके वापस घर के लिए चल पड़ा।

मन में भय था कि घरवाले बहुत बातें सुनाएंगे।
मगर शाम को जब वो घर पहुंचा तो बिटिया कि शादी हो चुकी थी।

उसकी पत्नी ने उसे देखा और कहा- लो! चाए पी लो।

उसने कुछ कहे बगैर चाए पी ली।
और सोचता रहा कि परिवार में किसी ने भी उससे कोई सवाल ही नहीं किया।

इस दौरान उसका भजन-सिमरन नियम से और नियमित रूप से चलता रहा।

काफी दिनों के बाद उसकी बिटिया का घर पर आना हुआ।

रात को जब सब शादी की एल्बम देखने लगे,
तो वो भी साथ में एल्बम देखने लग गया।

शादी की एल्बम में जब उसने अपनी फोटो देखी,
तो फोटो देखकर वो जोर-जोर से और फूट-फूट कर रोने लग गया।

घरवालों ने उससे रोने का कारण पूछा,
तो उसने सारी बात बताई।

उसकी बात सुनकर सब घरवालों की आँखों में भी खुशी के आंसू,
सत्गुरू के शुकराने के रूप में बहने लग गए,
कि सत्गुरू स्वयं हमारी लाज बचाने के लिए उस सत्संगी भाई के रूप में पहुंचे,
और सारी जिम्मेदारियां भी निभाईं।

अब वो सत्संगी आश्रम गया,
और जाकर सत्गुरू के सामने बैठकर रोने लगा।
तो सत्गुरू जी ने कहा- क्या हुआ भाई! क्यों रोते हो?

तब उस सत्संगी ने सत्गुरु को सारी बात बताई- सच्चे पातशाह! आप तो सब कुछ जानी जान हो।

यह सुनकर सत्गुरू हंसने लगे और बोले- भाई! मैं तो उस दिन आश्रम में ही था।
पर बेटा! जब तुम्हें अपने मालिक (ऊपर भगवान की तरफ इशारा करके) के ऊपर पूरा भरोसा था,
और उस भरोसे से तुमने मालिक के काम को प्राथमिकता से किया,
फिर मालिक तुम्हारे काम को कैसे न करता।
मालिक तो अपने बच्चों की लाज हमेशा रखता है ना।

इसीलिए हमें भी चाहिए,
कि हम भी ऐसा ही दृढ़ प्यार और भरोसा अपने सत्गुरु जी पर रखें।
सत्गुरू अपने सत्संगों में फरमाते हैं,
कि परमारथ तुम करो स्वारथ मैं पूरा कर दूंगा।

बस हमें सिर्फ और सिर्फ,
दिल से अपने सत्गुरू पर पूरन भरोसा करना है।
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