मैं क्यों पापी

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*🤔मैं क्यों पापी!?*

😀 एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि *सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गई!*

     उसने यह जानने के लिए तपस्या की, कि *पाप कहाँ जाते है*?
 
    🤴तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए, ऋषि ने पूछा: 'भगवन, जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है?'

     🌹 भगवान ने कहा: 'चलो गंगा से ही पूछते हैं'। दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा:'हे गंगे!जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते हैं, तो इसका मतलब आप भी पापी हुई!'
🌊गंगा ने कहा:'मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूं!'
  🏝अब वे लोग समुद्र के पास गए और पूछा:'हे सागर!गंगा जो पाप आपको अर्पित करती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए!'
समुद्र ने कहा:,'मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को भाप बना कर बादल बना देता हूँ!'
  🌧अब वे लोग बादल के पास गए और कहा,:हे बादलों!समुद्र जो पापों को भांप बनाकर बादल बना देते हैं, तो इसका मतलब आप पापी हुए!'
🌧बादलों ने कहा:'मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ, जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है, उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है,जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है!'

*⃣ शायद इसलिये कहते हैं.....🥙🍛
*'जैसा  खायेंअन्न, वैसा बनता मन'*
👉🏽इसीलिये *सदैव भोजन प्रभु सिमरन और शांत अवस्था में करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए वह धन ईमानदारी एवं श्रम का होना चाहिए.... ☝क्योंकि हर एक बात हम नही कर सकते परंतु जितना हमारे हाथ में है उतना तो सच्चे दिलसे व ईमानदारी से, प्रभु की याद में कर ही सकते हैं.... जीससे अपवित्र भी पवित्र बन जाये.....*
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