भाग्य कैसे जागता है?


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*भाग्य कैसे जागता है?*

एक राजा बड़ा ही कर्मठ और पुरुषार्थी था। उसका एक बेटा था लेकिन वह बड़ा आलसी था। हाथ-पैर हिलाना, परिश्रम करना उसे पसंद न था। राजा ने विचार किया कि उसके बाद उसकी प्रजा और राज्य की देखभाल कौन करेगा।
बहुत सोच-विचार के बाद राजा अपने बेटे को एक साधु के पास ले गया और उन्हें सारी बात बताकर उसे आश्रम में छोड़ आया। साधु नित साधना में लीन रहते थे। उन्होंने राजकुमार से कहा, ‘‘वत्स, यहां से चार कोस पर एक जंगल है, तुम प्रात: वहां से फूलों के पौधे लाकर आश्रम के अहाते में लगाया करो।’’
राजकुमार को बहुत बुरा लगा और सोचने लगा कि यह काम तो नौकरों का है। लेकिन उसके पिता कह गए थे कि साधु जो कहें, वह करना। मन मारकर अगले दिन से राजकुमार साधु के बताए काम पर लग गया।
फिर क्या था, कुछ ही दिनों में सारा आश्रम तरह-तरह के फूलों से महक उठा। राजकुमार की खुशी का भी ठिकाना न रहा। साधु खुश था कि राजकुमार ने मन से परिश्रम किया।
साधु ने राजकुमार को शाबाशी दी और कहा, ‘‘वत्स, लाखों की एक बात हमेशा याद रखना, जो सोता है उसका भाग्य भी सो जाता है और जो चलता है, दिन-रात परिश्रम करता है, उसका भाग्य भी चलता है। तुम्हारी सक्रियता से, परिश्रम से आश्रम का रूप ही बदल गया है। यह तुम स्वयं भी देख रहे हो।’’
राजकुमार को शासन की ही नहीं, बल्कि जीवन की भी कुंजी मिल गई। जब तक व्यक्ति को स्वयं पर विश्वास नहीं होगा, तब तक वह कोई भी कार्य पूर्ण नहीं कर पाएगा। आत्मविश्वासी व्यक्ति के पास साहस का अक्षय भंडार होता है। जीवन की
कुंजी को प्राप्त करने के लिए निरंतर चलते रहना होगा।

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