एक निश्चय


|| श्री परमात्मने नमः||
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*एक निश्चय*


आप और हम विचार करें कि हमारे सामने अनुकूलता-प्रतिकूलता कई बार आयी है ओए गयी है || हमने सुख भी भोगा है और दुःख भी भोगा है | परन्तु हमें शान्ति तो नहीं मिली ! वहम होता है कि ऐसा गुरु मिल जाय तो कल्याण हो जाय; ऐसा परिवार मिल जाय तो कल्याण हो जाय; ऐसी स्त्री मिल जाय तो बड़ा ठीक रहे; ऐसा पुत्र मिल जाय तो बड़ा ठीक रहे; ऐसा मित्र मिल जाय तो हम निहाल हो जायँ; इतना धन मिल जाय तो हम निहाल हो जायँ; ऊँचा पद मिल जाय तो हम निहाल हो जायँ, आदि-आदि | इसमें आप विचार करें कि अनुकूल स्त्री किसी को नहीं मिली है क्या ? अनुकूल पुत्र किसी को नहीं मिला है क्या ? अनुकूल परिस्थिति किसी को नहीं मिली है क्या ? परन्तु क्या वे इच्छाओं से रहित होकर परमात्मा को प्राप्त हो गये ? विचार करने से दीखता है कि जिसको ये सब अनुकूलताएँ मिली हैं,  उसकी इच्छाएँ नहीं मिटी हैं | वह कृतकृत्य, ज्ञात-ज्ञातव्य नहीं हुआ है | अत: कोई भी इन परिस्थितियों से निहाल हो जाय - यह असम्भव बात है | कारण कि स्वयं बदलने वाले नहीं हो | बदलने वाले परिस्थितियों से आप ऊँचे कैसे हो जाओगे ? नाशवान के द्वारा अविनाशी कि उन्नति कैसे हो जायगी ? हो ही नहीं सकती | असम्भव बात है | मैंने इस विषय में खूब अध्ययन किया है | आप परमात्मप्राप्ति का ही एक निश्चय कर लो, फिर अनुकूलता आपके पीछे दौड़ेगी |

       नाम नाम बिनु ना रहे, सुनो सयाने लोय |
       मीरा सुत जायो नहीं, शिष्य न मुंडयो कोय ||

मीराबाई का नाम आज भी कितने आदर से लिया जाता है ! उनका नाम लेने से, उनके पद गाने से लोग अपने में पवित्रता का अनुभव करते हैं | उनमे क्या बात थी ? 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई | जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई ||' एक ही निश्चय था कि मेरा पति वही है | क्या होगा, क्या नहीं होगा - इस बात की कोई परवाह नही | अहंता बदलने पर, एक निश्चय होने पर राग-द्वेष कुछ नहीं कर सकते | इनमे ताकत नहीं है अटकाने की | केवल हमारा विचार पक्का होना चाहिये |

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                    जय सियाराम

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