असल गीत वही है जो परमात्म भाव से उपजे*


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*असल गीत वही है जो परमात्म भाव से उपजे*  

अकबर ने तानसेन को पूछा कि तुम्हारे गुरु को मैं मिलना चाहता हूं . क्योंकि कल रात जब तुम गा कर विदा हुए , तो मेरे मन में ऐसा भाव था कि तुमसे श्रेष्ठ न तो गायक कभी हुआ है , और न होगा . लेकिन जब मैं यह सोच रहा था , तभी मुझे खयाल आया कि तुमने भी किसी से सीखा होगा ! कोई होगा तुम्हारा गुरु ! तो मेरे मन में एक जिज्ञासा उठ गयी कि कौन जाने तुम्हारा गुरु तुम से आगे हो . तो मैं तुम्हारे गुरु को मिलना चाहूंगा . मैं तुम्हारे गुरु को भी सुनना चाहूंगा .

तानसेन ने कहा , यह जरा कठिन है . गुरु मेरे हैं और अभी जीवित हैं . सुनना भी हो सकता है , लेकिन बड़ी कठिनाई है .

*उन्हें दरबार में नहीं बुलाया जा सकता .*
*फरमाइश पर वे नहीं गाते .*
*उनका गान तो पक्षियों जैसा है .*
*वे जब गाते हैं तभी सुना जा सकता है .*

तो अगर आप उनको सुनना चाहते हैं , तो हमें ही उनके झोपड़े के पास चलना पड़ेगा और वह भी छिप कर ही सुना जा सकता है , क्योंकि हम पहुंचेंगे तो वे शायद रुक जाएं . तो मैं पता लगाऊंगा कि अभी कब गाते हैं वे ! क्योंकि जब वे गाते हैं . तो हम छिपे रहेंगे .

पता चला कि वे तीन बजे रात उठते हैं . वे तो फकीर थे . हरिदास उनका नाम था . यमुना के तट पर उनका झोपड़ा है . अब वहीं वे अपने झोपड़े में गाते हैं . अपनी मस्ती में गाते हैं . वही गीत पक्षियों का है . उस गीत का किसी से कुछ लेना-देना नहीं है .

अकबर और तानसेन रात दो बजे जा कर झोपड़े के पास छिप गए . तीन बजे संगीत शुरू हुआ . अकबर मूर्ति की तरह ठगा रह गया . आंख से झर-झर आंसू की धार लग गयी . जब वापस लौटे अपने रथ में , तो रास्ते भर तानसेन से कुछ बोल न सका . ऐसा भावविभोर हो गया . भूल ही गया तानसेन को . महल में उतरते वक्त उसने इतना ही कहा कि अब तक मैं सोचता था कि तेरा कोई मुकाबला नहीं है और आज मैं सोचता हूं कि तेरे गुरु के सामने तू तो कुछ भी नहीं है . मैं यह पूछना चाहता हूं कि इतना फर्क क्यों ?

तानसेन ने कहा , फर्क भी पूछने की जरूरत है क्या ?

*मैं आपके लिए गाता हूँ , मेरे गुरु परमात्मा के लिए गाते हैं .*

*जब मैं गाता हूं तो मेरी नजर लगी है पुरस्कार पर कि क्या मिलेगा ? मैं गाता हूं , ताकि कुछ मिले . मेरा गाना व्यवसाय है .*
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मेरे गुरु कुछ पाने के लिए नहीं गाते हैं . ठीक स्थिति उलटी है . मेरे गुरु तभी गाते हैं ,

*जब वे इतने भरे होते हैं परमात्मा के भाव से*
*जब उन्हें कुछ मिला होता है*
*जब उनका कंठ भरा होता है*
*जब उनके हृदय में लहरें उठ रही होती हैं*
*जब वे आपूर होते हैं उसके दान से तब बहते हैं*

और मैं गाता हूं मिलना पीछे है . तो कर्म-फल पर मेरी नजर लगी है . और इसलिए मैं क्षुद्र हूं . आप ठीक कहते हैं . मेरे गुरु से मेरा क्या मुकाबला ? मैं कितना ही कुशल हो जाऊं , मेरे हाथ कितने ही सध जाएं , मेरा गला कितना ही प्रवीण हो जाए , लेकिन आत्मा उसमें प्रवेश न पा सकेगी . मैं विशेषज्ञ रहूंगा और मेरे गुरु कोई विशेषज्ञ नहीं हैं , उनका गीत एक पक्षी का गीत है .

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