संस्कार परिवर्तन


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संस्कार परिवर्तन ___👇

प्रश्न:- हमारे सँस्कार कब और कैसे परिवर्तन होंगे, विधि बताये।

उत्तर:- सबसे पहले जाने की सँस्कार क्या और कितने प्रकार के होते है:-

सँस्कार, जैसे हमारा खुश रहना, दुखी रहना, गुस्सा करना आदि।  हमारी अन्य आदतें जैसे टोंट कसना, नेगेटिव सोचना, अति आत्म विश्वास आदि। अब आप कहंगे आदत और सँस्कार में क्या अन्तर है?
देखिये इसे ऐसे समझें:- अगर हम एक दिन सुबह देरी से उठे और हमने सोचा कोई बात नहीं, कल समय से उठ जायँगे। लेकिन अगले दिन फिर से ऐसा ही हुआ और हमने फिर अपने मन को कहा कि कल पक्का समय से उठँगे।
कुछ दिन ऐसा करना मतलब अब ऐसा करना हमारी आदत बन गई। लेकिन कुछ ही महीनों में या कुछ साल तक ऐसा करना मतलब, अब वो आपकी आदत नहीं बल्कि अब आप बोलते हैं कि मुझसे सुबह देरी से ही उठा जाता है, मैं जल्दी नहीं उठ सकती/ सकता। मेरे लिए जल्दी उठना पॉसिबल नहीं है।
तो इसका मतलब हुआ की आपकी ये आदत अब आपका सँस्कार बन गया है क्योंकि आपने अपने मन में यानी आत्मा में ( हम सभी जानते हैं कि आत्मा, मन और बुद्धि से मिलकर बनी है।)  यह डाल दिया है या ये कहें कि ये छप गया है कि आप जल्दी या समय पर नहीं उठ सकते।
तो ये सँस्कार कड़ा हो गया क्योंकि अब ये आदत नहीं रहा। आदत को बदलना आसान होता है, पर संस्कार को बदलने में थोड़ा सा ज्यादा समय लगता है।

चलिये अब जानते हैं कि सँस्कार कितने प्रकार के होते हैं:- हर आत्मा में 5 तरह के सँस्कार होते हैं। जोकि निनलिखित है:-
1. पुराने जन्मों के सँस्कार।
2. पारिवारिक सँस्कार।
3. वातावरण द्वारा बने सँस्कार।
4. दृढ़ निश्चय से बने सँस्कार
5. और हर आत्मा के असली 7 सँस्कार:- पवित्रता, सुख, शान्ति, प्रेम, ख़ुशी, शक्ति और ज्ञान।

पहले के जो चार प्रकार के सँस्कार है, उन्हें प्राप्त सँस्कार कहा जाता है। क्योंकि वो हमने कभी ना कभी खुद ही बनाये या प्राप्त किये हैं।
लेकिन बाकी सात सँस्कार तो हम आत्मा के असली सँस्कार हैं, जो हम भूल गए हैं और इसलिए उनका इस्तेमाल करना नहीं आता।
अब ये जानना है कि हमें अपने प्राप्त संस्कारों को कैसे बदलना है या ये कहें कि कैसे अपने असली संस्कारों को जाग्रत करना है। कुछ पॉइंट्स निम्नलिखित है:-

1. सबसे आसान तरीका है कि जब हमें ये ज्ञान मिल गया है, तो अब हम अपनेआप को एक बच्चा समझें क्योंकि एक बच्चे को जैसे चाहें वैसे, किसी भी रूप में ढाला जा सकता है, उन्हें सिखाया जा सकता है। और फिर हमारे प्यारे शिव परमात्मा भी तो यही कहते हैं कि ज्ञान में आने के बाद हमारा नया जन्म हुआ है। हम बच्चा बन सब सीखते हैं।

2. सँस्कार परिवर्तन में सबसे ज्यादा हमें, हमारी नकारत्मक विचार या सोच परेशान करते है और इसके कारण ही हम यह भी सोच लेते हैं कि ये सँस्कार तो नहीं बदल सकता।
तो इसका सबसे आसान तरीका है की, अपने आप को खूब सकारात्मक सोच से हर दिन, हर पल, हर समय भरते जायें। सकारात्मक किताबें पढ़े, स्पीच सुने, स्लोगन पढ़े, दोस्त भी सकारात्मक चुनें। धीरे धीरे आप अपने आप को केवल सकारात्मक महसूस ही नहीँ करँगे वरन सकारात्मक बन जायँगे।
ये विधि ठीक वैसे ही काम करती है जैसे एक कीचड़ से भरी बाल्टी को पानी की टुटी के नीचे रख दें और पानी को खुला छोड़ दें, तो कुछ ही घँटों में,  धीरे धीरे बाल्टी से कीचड़ ओवरफ्लो होकर बहार निकलता जाता है और बाल्टी साफ़ पानी से भर जाती है।
आपने कभी किसी मोटिवेशनल स्पीकर को सुना है? वह अपनी स्पीच में सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता और सफलता की ही बातें और कहानी सुनाते हैं, जिससे सुनने वाले में एक रचनात्मक बदलाव आ जाता है। तो हमें अब अपने आप को खुद ही मोटीवेट करना होगा।

3. एक एक करके, ज्ञान के माध्यम से अपने सँस्कार बदलें। जी कौशिश नहीं, बदलना ही है। ऐसा सोचें। जैसे आपने दृढ निश्चय से अपने प्राप्त सँस्कार बनाये हैं ठीक वैसे ही निश्चय कर, अपने प्राप्त संस्कारों को बदलें।

4. एक और आसान तरीका है कि अपने असली संस्कारों को याद करें, बार बार, हर बार। जैसे मान ले की आपमें गुस्से का सँस्कार है। तो आपको अब यह नहीं सोचना की मुझे तो बहुत गुस्सा आता है, मेरा स्वभाव तो ऐसा ही है आदि। नहीं!! वरन इसका उल्टा सोचिये:- मेरा सँस्कार तो शान्त रहना है। मैं तो शांतिस्वरूप हूँ। मैं हूँ ही। शान्त ही हूँ।
ऐसा नहीं के शान्त बनना है। नहीं। मैं शान्त ही हूँ। शान्ति मुझ आत्मा का ओरिजनल सँस्कार है। सोते जागते, उठते बैठते बस यही की मैं तो शान्त आत्मा हूँ, सामने आने वाली हर आत्मा शान्त आत्मा है। इस तरह अब आप कोई भी एक सँस्कार लें और उसका उल्टा, जोकी सही है, वो अपने आप को समझें।

5. अब उपरोक्त विधि को कम से कम एक महीना करना ही है। एक समय सीमा सुनिश्चित करें और अपने मन को कहें कि इस समय तक तुम्हें ये सँस्कार बदलना या ये असली सँस्कार जाग्रत करना है।
मन कहेगा, ऐसा नहीं होता, लोग तो कुछ भी कहते है, गुस्सा तो आता ही है। आदि। तो आप फिर उसे समझाये की नहीं ऐसा नहीं होता।
याद है ना की आप भी अभी बच्चे हैं जैसा बाबा ने कहा? ठीक वैसे ही अपने बच्चे, मन को समझाए और अपनी यात्रा जारी रखें और फिर अगली यात्रा यानी अगले सँस्कार को बदलने को तैयार हो जाएं।

6. हम सभी ज्ञानी आत्मायें हैं और जानते ही हैं कि योग में कितनी शक्ति है। तो जब अमृतवेला और नुमाशाम योग करें, तब शिव परमात्मा से शक्तियां लें और अपने में, आत्मा में उन शक्तियों को समाहित करें। क्योंकि केवल शिव परमात्मा ही इन शक्तियों का सागर है, जिनसे हम जितना चाहे, उतना ले सकते हैं।

7. शिव परमात्मा ने बहुत बार कहा है कि बच्चे, मुश्किल शब्द कभी नहीं यूज़ करना क्योंकि मुश्किल कहा और मन ने तुरंत उसे ग्रहण कर लिया। फिर हर बात में, हर काम में मुश्किल ही नजर आएगी।
तो हमेशा सरल रहे, सकारात्मक रहे और प्यारे शिव परमात्मा का ये स्लोगन हमेशा याद रखें कि क्या मुश्किल है? सब हो जायेगा।

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ओम शान्ति।

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