गन्दी सोच खोटी नीयत
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🇲🇰 प्रेरणादायी कहानियाँ 🇲🇰
🤪 *गन्दी सोच खोटी नीयत* 🧐
✍ महिला दिवस के नाम पर, मोहल्ले में महिला सभा का आयोजन किया गया था।
सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी.
मंच पर तरकीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सज्जित.. *जो आवरण कम दे रहे थे और नुमाया ज्यादा कर रहे थे बदन को।*
माइक थामे कोस रही थी, पुरुष समाज को।
वही पुराना आलाप.. कम और छोटे कपड़ो को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नियत का दोष बतला रही थी।
तभी अचानक सभा स्थल से तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी।
युवती अनुरोध स्वीकार कर माइक उसके हाथों में सौंप गयी हाथों में माईक आते ही उसने बोलना शुरू किया
9893236423✍🏻
माताओं बहनों और भाइयो आप मुझको नही जानते किमै कैसा इंसान हूँ ..
लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ ?
*बदमाश या फिरशरीफ...?*
सभास्थल से आवाज़ें गूंज उठीं, शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो....
ये सुनकर... अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली, सारे कपड़े सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अंडरवियर छोड़ मंच पर ही उतार दिये...
उसका ये रवैया देख कर पूरा सभा स्थल गूंज उठा आक्रोश के शोर से.... मारो मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें... मां बहन का लिहाज नहीं है इसको ! नीच इंसान है ये ! छोड़ना मत इसको..
ये आक्रोशित शोर सुन कर अचानक वो माइक पर गरज उठा... *रुको..* पहले मेरी बात सुन लो... फिर मार भी लेना चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको.
अभी अभी तो.... ये बहन कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे छोटे कपड़ों के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगा रही थी...
पुरुषों की नियत और सोच में खोट बतला रही थी..
तब तो आप सभी तालियाँ बजाकर सहमति जतला रहे थे..
*फिर मैने क्या किया है..*
सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है।
नियत और सोच की खोट तो नहीं और फिर मैने तो, आप लोगों को माँ, बहन और भाई कहकर ही संबोधित किया था.
फिर मेरे अर्द्धनग्न होते ही.
आप में से किसी को भी मुझमें *भाई और बेटा* क्यों नहीं नजर आया.
सिर्फ मर्द ही आपको क्यों नज़र आया.
आप में से तो किसी की सोच और नियत खोटी नहीं थी फिर *ऐसा क्यों..?*
सच तो ये है कि.. झूठ बोलते हैं लोग कि वेशभूषा और पहनावे से कोई फर्क नही पड़ता।
*हकीकत तो यही है मानवीय स्वभाव की...*
🔰 सम्पूर्ण आवरण में उत्सुकता,
🔰 अर्द्ध आवरण में उत्तेजना
*और*
🔰 किसी को सरेआम बिना आवरण के देखे लें तो घिन सी जगती है मन में.
ऐसे ही ये लोग (महिला स्वतन्त्रता की पैरोकार तथाकथित आधुनिकाएं) तो निकल जाती हैं भाषण झाड़ कर... अर्द्धनग्न होकर वहशियों की वहशत को जगाकर और शिकार हो जाती हैं उनकी वहशत की कमजोर औरतें और मासूम बच्चियां...!
कृपया समझें और समझायें अपने परिजनों को। अंधी आधुनिकता के फेर में ना पड़ें ।
👉 *पहले स्वयं सभ्य बनें तो दूसरों को भी सभ्यता का पाठ पढ़ाएं.*
प्रेरणादायी कहानिय👇🏻 Nayisoch2020.blogspot.com
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✍ महिला दिवस के नाम पर, मोहल्ले में महिला सभा का आयोजन किया गया था।
सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी.
मंच पर तरकीबन पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से सज्जित.. *जो आवरण कम दे रहे थे और नुमाया ज्यादा कर रहे थे बदन को।*
माइक थामे कोस रही थी, पुरुष समाज को।
वही पुराना आलाप.. कम और छोटे कपड़ो को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नियत का दोष बतला रही थी।
तभी अचानक सभा स्थल से तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी।
युवती अनुरोध स्वीकार कर माइक उसके हाथों में सौंप गयी हाथों में माईक आते ही उसने बोलना शुरू किया
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माताओं बहनों और भाइयो आप मुझको नही जानते किमै कैसा इंसान हूँ ..
लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ ?
*बदमाश या फिरशरीफ...?*
सभास्थल से आवाज़ें गूंज उठीं, शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो....
ये सुनकर... अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली, सारे कपड़े सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अंडरवियर छोड़ मंच पर ही उतार दिये...
उसका ये रवैया देख कर पूरा सभा स्थल गूंज उठा आक्रोश के शोर से.... मारो मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें... मां बहन का लिहाज नहीं है इसको ! नीच इंसान है ये ! छोड़ना मत इसको..
ये आक्रोशित शोर सुन कर अचानक वो माइक पर गरज उठा... *रुको..* पहले मेरी बात सुन लो... फिर मार भी लेना चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको.
अभी अभी तो.... ये बहन कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे छोटे कपड़ों के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगा रही थी...
पुरुषों की नियत और सोच में खोट बतला रही थी..
तब तो आप सभी तालियाँ बजाकर सहमति जतला रहे थे..
*फिर मैने क्या किया है..*
सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है।
नियत और सोच की खोट तो नहीं और फिर मैने तो, आप लोगों को माँ, बहन और भाई कहकर ही संबोधित किया था.
फिर मेरे अर्द्धनग्न होते ही.
आप में से किसी को भी मुझमें *भाई और बेटा* क्यों नहीं नजर आया.
सिर्फ मर्द ही आपको क्यों नज़र आया.
आप में से तो किसी की सोच और नियत खोटी नहीं थी फिर *ऐसा क्यों..?*
सच तो ये है कि.. झूठ बोलते हैं लोग कि वेशभूषा और पहनावे से कोई फर्क नही पड़ता।
*हकीकत तो यही है मानवीय स्वभाव की...*
🔰 सम्पूर्ण आवरण में उत्सुकता,
🔰 अर्द्ध आवरण में उत्तेजना
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ऐसे ही ये लोग (महिला स्वतन्त्रता की पैरोकार तथाकथित आधुनिकाएं) तो निकल जाती हैं भाषण झाड़ कर... अर्द्धनग्न होकर वहशियों की वहशत को जगाकर और शिकार हो जाती हैं उनकी वहशत की कमजोर औरतें और मासूम बच्चियां...!
कृपया समझें और समझायें अपने परिजनों को। अंधी आधुनिकता के फेर में ना पड़ें ।
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Very nice massage
ReplyDeleteBeautiful Story....
ReplyDeleteThis is mind blowing..andhe samaaj ke muh per karara tmacha hai ye story...hatts off..
ReplyDeleteI caught you from whatsapp group "positive energy"
Nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery beautiful story
ReplyDeleteVery nice spich
ReplyDeleteबहुत खूब👌👌
ReplyDeleteExcellent really very excellent
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