गुरू महिमा

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*गुरू महिमा*
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एक बार एक सत्संगी सेवा करने के लिए आया हुआ था, दस दिन की सेवा ख़तम होने के बाद वो घर जाने वाला था कि एक दिन पहले उसकी टांग टूट गयी,
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वह काफी दुखी हुआ और उसके मन में ख्याल आया कि दस दिन सेवा की और उसके बदले में टांग टूट गयी.. मालिक तो सब जानते हैं,
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जब महाराज जी संगत को दर्शन देने के बाद अपनी कोठी जा रहे थे तो रस्ते में उस भाई से मिले, और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि आज रात को भजन पर जरूर बैठना
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जब वह रात को भजन करने के लिए बैठा तो महाराज जी उसकी सुरत ऊपर के मंडलों में ले गए और उसको दिखाया कि जिस बस में उसने वापिस जाना था उसका एक्सीडेंट हो गया था,
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और उस एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गयी थी, महाराज जी ने उसकी सुरत को उसकी deadbody भी दिखाई, क्योंकि वह सतगुरु की शरण में आया हुआ था इसलिए महाराजजी ने उसके कर्म काटकर उसकी सिर्फ टांग ही टूटने दी
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जब उसकी सुरत नीचे सिमटी तो उसका रो रो कर बुरा हाल हुआ और उसने मालिक से अरदास की कि मालिक बक्श दो – बक्श दो
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सार – सतगुरु पर हमें पूरा विश्वास होना चाहिए, वो हमारा बाल भी बांका नहीं होने देते, और जो हमारे साथ होता है उसमें कहीं न कहीं हमारा अच्छा ही होता है….
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सत्संग में फ़रमाया गया- हम जो घड़ी, आधी घड़ी, घंटा दो घंटा भजन बैठते है वो उस तरह है जैसे हम कोई बिमा पालिसी में थोड़ी थोड़ी रकम installment के रूप में भरते है..
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फिर जब बिमा पालिसी पक जाती है तब एक बड़ा amount हमें इंटरेस्ट के साथ बोनस के साथ वापिस मिलता है।
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ठीक उसी तरह थोड़ा थोड़ा किया भजन एक दिन बहुत बड़ा interest और बोनस के साथ हमें सतगुरू एक साथ देता है।
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कतरे कतरे से तालाब और बूँद से सागर भरता है। हम जो डेरे में सेवा में मिट्टी की एक टोकरी उठाते है सतगुरू हमें उसकी भी मजदूरी देता है।
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आओ आज से हम भजन की बीमा policy में थोड़ा थोड़ा भजन का installment अदा करे ।
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फिर आगे की गुरु पर छोड़ दे। वो हमारे आधे अधुरे भजन की लाज रखेंगे।

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