सतगुरु_जी_की_सेवा_सफल_है

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#सतगुरु_जी_की_सेवा_सफल_है

कहीं भी मिले मौका ना छोड़े सत्संग में हम देखते हैं की जगह ,जगह कई तरहा की सेवा में ,सेवादार बड़े प्रेम श्रद्धा और उत्साह से दिन हो या रात ,सर्दी हो या गर्मी या बारिश ,संगत की सेवा को ही अपना धर्म और जसतगुरू जी का हुकम समझ के शिरोधार्य करता है। ये संगत की सेवा ही सतगुरु जी की बेअंत सेवा हे सतगुरु जी की सेवा भी विरलों को मिलती है विरलों से मतलब मन में सेवा भावना की प्रबल इच्छा, समर्पण ,त्याग ,दिल दिमाग में किसी भी तरहा का गुरुर ना हो नम्रता शीतलता बिना मान बड़ाई के ,सतगुरु जी को अर्पित कर के की गई संगत की सेवा का फल भी सतगुरू जी खुले हाथों से देते हैं। ऐसी सेवा से बहुत खुश रहते हैं हमारे दयालु सतगुरु जी और सेवादार के परिवार ,कारोबार की साझ सम्हाल और देखभाल खुद करते हैं।

ये इतना ही सत्य है जैसे चांद और सूरज का प्रकट होना हम भी सेवा कर सकते है दिल में सेवा का निर्मल भाव रख के जहां जो भी सेवा चल रही है ,हम भी उसमें जितना बन सके सेवा कर सकते हैं ,ये भाव मन में ना आनें दें की हमारे पास सेवा के बैच या टोकन नही है। ये तो एक पहचान है, आप बिना बैच या टोकन के पुरे समर्पण से सेवा करें फिर आपको खुद महसुस होगा की सतगुरु जी की की प्यारी संगत की सेवा में कितनी मिठास हैं ,आत्मिक सुख है ,और श्रद्धाभक्ति है।
चाहे केन्टीन के बाहर की सेवा हो ,लंगर परोसने की सेवा, जुठे बर्तन की सेवा, टॉयलेट की सेवा, बुजुर्गों को धक्के से बचाना अनेक सेवाएं है। सतगुरू जी के सत्संग में कभी भी कहीं भी सेवा में जुट जाएं वो सतगुरु आपको नदरनिहाल कर देगा क्योंकि उसकी साद संगत की ख़ुशी ही सतगुरू की असली ख़ुशी है। सेवादार तो एक ईट है जिसे सेवा की भट्टी में डालकर निखारता है सतगुरु। खुद का और अपनों का आईना दिखाता है सतगुरु। सेवादार बनता है समर्पण से, समर्पण होता है प्रेम से, प्रेम उत्पन्न होता है सच्चे भावों से - सच्चे भाव मिलते हैं श्रद्धा से,श्रद्धा मिलती है भगवान से,और भगवान मिलते हैं सच्चे गुरुओं से। इसलिए मत भूलो, सेवा देता और कराता है सतगुरु।

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