श्रद्धा और विश्वास..
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श्रद्धा और विश्वास.......
एक फकीर आर्शिवाद लेने अपने गुरु के पास गया । वहूत समय हो गया था गुरु से मिले । उनके गुरु की बड़ी ख्याति थी । पुरे शहर में उनका मान और सम्मान था । और यह फकीर बड़ा श्रद्धालु और सीधासाधा था । गुरु उसे जो भी कहता वह सदा मानने को तत्पर रहता था । धिरे धिरे इस शिष्य की प्रतिष्ठा बढ़ने लगी । कुछ ही दिन में वह गुरु के सब से प्रिय शिष्य वन गया था । ओर शिष्यों को ये वात देखकर असहनिय पीड़ा हुई । जलन होने लगि उस शिष्य से ।
उन दुसरे शिष्यों ने एक दिन एक योजना वनाई । उस सिधेसाधे और दयालु शिष्य से हमेशा हमेशा के लिये छुटकारा मिल जाये । एक दिन उन शिष्यों ने उसे एक पहाड़ी के ऊपर ले गये । जलन से भरे एक शिष्य ने उस दयालु शिष्य से कहा कि अगर उसे गुरु में पूरी श्रद्धा है तो वह पहाडी से कूद कर दिखाये । तो वह शिष्य उस पहाडी से कूद गया । उन स्वार्थी शिष्यों को तो पक्का यकिन हो गया कि अव यसका काम खतम हुवा । अव ये नही वचेगा । सब शिष्यें नीचे आकर देखा तो वह शिष्य तो पद्यासन में बैठा था । ऐसा सौंदर्य और ऐसी सुगंध उसके आसपास बरस रही थी । जो उन्होंने कभी किसी व्यक्ति के पास नही देखी थी । वे तो बड़े हैरान हुये सोच में डुव गये ।
उनकी एक योजना असफल हुई तो दुसरी योजना फीर तैयार हो गयी । कुछ भी हो कैसे भी हो उस सिधे शिष्यको तो परमात्मा तक पहुचाने की जैसे इनों नें कसम ही खाली थी । दुसरी योजना वनी । उस सिधे शिष्यको ले गये एक जलती मकान के पास । और जलन से भरे एक शिष्य ने कहा -"अगर तुमे गुरु पर पूरा भरोसा है । तो इस मकान के अंदर कुद जावो । इतना सुन्ना ही था की वह भोला शिष्य कुद गया जलता घर के अंदर । कुछ देर वाद मकान तो जलकर राख हो गया था । जब वह शिष्य अंदर गए तो उन के होस उड गये । वह तो राख पर यैसे बैठा था । जैसे जल में कमलवत खिलता है । आग ने उसे छुआ ही नहीं था । यह तो एक चमत्कार से कम नही था । आग में था और आग ने उसे छुआ भी नही ।
शिष्य के चमत्कार की खबरे गुरु के पास पहुंच गयी । गुरु को भी भरोसा नही हुवा । क्योंकि गुरु खुद में भी इतनी श्रद्धा नही थी । गुरु ने सोचा कि संयोग ही हो सकता है । क्योंकि मेरे नाम से हो जाए । ये संभव नही है । जलते मकान में कोई कुद जाये और बचकर लौट आये, पहाड़ से कुद जाये और कुछ भी ना हो । इतना विश्वास तो मुझे भी अपने आप में नही है । मै पहाड से गिरु या जलते आग में कुद जाऊ । और कोई अज्ञात हाथ मुझे सम्हाल लेंगे । मै तो इतना विश्वास कभी नही कर सकता । और कभी करूगा भी नही ।
एक दिन नदी के तट से गुरु और सब शिष्य गुजर रहे थे । अचानक गुरु ने सिधे शिष्य से पुछा कि तुझे मुझ पर इतना भरोसा है कि तुम आग में कुद गये । पहाडों से छलांग लगा दी । कुछ भी नही सोचा । सिर्फ मेरी श्रद्धा के कारण ।
तो तू आज इस नदी पर चल के वता । गुरु से आदेश मिलते ही वह शिष्य चल पड़ा । कुछ भी ना पुछा गुरु से । आज्ञा मिला बस राह पकड ली । नदी पर चलने लगा पर उसे नदी ने नही डुबाया । वह नदी पर ऐसा चला जैसे जमीन पर चल रहा हो । एक दम शान्त से चला जा रहा था । गुरुको विश्वास नही हुवा । और मन ही मन घमण्ड से भर गया की निश्चित ही ये चमत्कार उसके नाम का ही है । अहंकार से वह भर गया । अपने आपको भगवान से वढकर समझने लगा ।
अहंकार से भरा गुरु ने सोचा की जब मेरा नाम लेकर कोई पानी में चल गया । तो मैं भी चल ही जाऊंगा । आखिर सव मेरा नाम का ही तो चमत्कार है । वह गुरु अभिमान में नदी में चला । पहले ही कदम पर वह डुबकी खा गया । किसी तरह शिष्यों ने उसे बचाया ।
उसने शिष्य से पूछा कि यह मामला क्या है । तुम पानी में चल पडे और मैं खुद डूब गया । गुरु की वाते सुनकर वह शिष्य हंसने लगा । उसने कहा -"मुझे आप पर श्रद्धा है । आपको अपने आप पर ना श्रद्धा है ना विश्वास है । हमे मुश्किल राहों में वचाने वाली हमारी अपनी श्रद्धा ही है । अपना विश्वास ही वचाता है ।
जिन पर हमे श्रद्धा है । उनमें कुछ भी न हो । फिर भी वह श्रद्धा हमे बचा लेती है । कभी ऐसा भी हो जाता है कि जिन पर हमे श्रद्धा ही नही होती । वह महान है । उसके पास सब कुछ है । फीर भी हम डुव जाते है । क्यों के हम में श्रद्धा थी ही नही । अश्रद्धा ही हमे डुबो देती है । कभी बुद्ध पर भी लोगों ने संदेह करा । तो वह डूब गए । और कभी पाखंडियों के उपर लोगों ने श्रद्धा की और मंजिल तक पहुंच गए ।
परमात्मा तक तुमे गुरु नहीं पहुचाता । तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा विश्वास तुमे पहुंचाता है । यदी कोई सच्चा गुरु है तो वह तुम्हारी श्रद्धा ही है। श्रद्धा से वडा ना कोई गुरु है । ना कभी कोई हो सकता है । और जहा, जीस पर श्रद्धा की आंख पड़ जाए वहीं गुरु पैदा हो जाता है । परमात्मा हमे कही पहुंचाता है तो हमारी प्रार्थना ही पहुंचाती है ।
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श्रद्धा और विश्वास.......
एक फकीर आर्शिवाद लेने अपने गुरु के पास गया । वहूत समय हो गया था गुरु से मिले । उनके गुरु की बड़ी ख्याति थी । पुरे शहर में उनका मान और सम्मान था । और यह फकीर बड़ा श्रद्धालु और सीधासाधा था । गुरु उसे जो भी कहता वह सदा मानने को तत्पर रहता था । धिरे धिरे इस शिष्य की प्रतिष्ठा बढ़ने लगी । कुछ ही दिन में वह गुरु के सब से प्रिय शिष्य वन गया था । ओर शिष्यों को ये वात देखकर असहनिय पीड़ा हुई । जलन होने लगि उस शिष्य से ।
उन दुसरे शिष्यों ने एक दिन एक योजना वनाई । उस सिधेसाधे और दयालु शिष्य से हमेशा हमेशा के लिये छुटकारा मिल जाये । एक दिन उन शिष्यों ने उसे एक पहाड़ी के ऊपर ले गये । जलन से भरे एक शिष्य ने उस दयालु शिष्य से कहा कि अगर उसे गुरु में पूरी श्रद्धा है तो वह पहाडी से कूद कर दिखाये । तो वह शिष्य उस पहाडी से कूद गया । उन स्वार्थी शिष्यों को तो पक्का यकिन हो गया कि अव यसका काम खतम हुवा । अव ये नही वचेगा । सब शिष्यें नीचे आकर देखा तो वह शिष्य तो पद्यासन में बैठा था । ऐसा सौंदर्य और ऐसी सुगंध उसके आसपास बरस रही थी । जो उन्होंने कभी किसी व्यक्ति के पास नही देखी थी । वे तो बड़े हैरान हुये सोच में डुव गये ।
उनकी एक योजना असफल हुई तो दुसरी योजना फीर तैयार हो गयी । कुछ भी हो कैसे भी हो उस सिधे शिष्यको तो परमात्मा तक पहुचाने की जैसे इनों नें कसम ही खाली थी । दुसरी योजना वनी । उस सिधे शिष्यको ले गये एक जलती मकान के पास । और जलन से भरे एक शिष्य ने कहा -"अगर तुमे गुरु पर पूरा भरोसा है । तो इस मकान के अंदर कुद जावो । इतना सुन्ना ही था की वह भोला शिष्य कुद गया जलता घर के अंदर । कुछ देर वाद मकान तो जलकर राख हो गया था । जब वह शिष्य अंदर गए तो उन के होस उड गये । वह तो राख पर यैसे बैठा था । जैसे जल में कमलवत खिलता है । आग ने उसे छुआ ही नहीं था । यह तो एक चमत्कार से कम नही था । आग में था और आग ने उसे छुआ भी नही ।
शिष्य के चमत्कार की खबरे गुरु के पास पहुंच गयी । गुरु को भी भरोसा नही हुवा । क्योंकि गुरु खुद में भी इतनी श्रद्धा नही थी । गुरु ने सोचा कि संयोग ही हो सकता है । क्योंकि मेरे नाम से हो जाए । ये संभव नही है । जलते मकान में कोई कुद जाये और बचकर लौट आये, पहाड़ से कुद जाये और कुछ भी ना हो । इतना विश्वास तो मुझे भी अपने आप में नही है । मै पहाड से गिरु या जलते आग में कुद जाऊ । और कोई अज्ञात हाथ मुझे सम्हाल लेंगे । मै तो इतना विश्वास कभी नही कर सकता । और कभी करूगा भी नही ।
एक दिन नदी के तट से गुरु और सब शिष्य गुजर रहे थे । अचानक गुरु ने सिधे शिष्य से पुछा कि तुझे मुझ पर इतना भरोसा है कि तुम आग में कुद गये । पहाडों से छलांग लगा दी । कुछ भी नही सोचा । सिर्फ मेरी श्रद्धा के कारण ।
तो तू आज इस नदी पर चल के वता । गुरु से आदेश मिलते ही वह शिष्य चल पड़ा । कुछ भी ना पुछा गुरु से । आज्ञा मिला बस राह पकड ली । नदी पर चलने लगा पर उसे नदी ने नही डुबाया । वह नदी पर ऐसा चला जैसे जमीन पर चल रहा हो । एक दम शान्त से चला जा रहा था । गुरुको विश्वास नही हुवा । और मन ही मन घमण्ड से भर गया की निश्चित ही ये चमत्कार उसके नाम का ही है । अहंकार से वह भर गया । अपने आपको भगवान से वढकर समझने लगा ।
अहंकार से भरा गुरु ने सोचा की जब मेरा नाम लेकर कोई पानी में चल गया । तो मैं भी चल ही जाऊंगा । आखिर सव मेरा नाम का ही तो चमत्कार है । वह गुरु अभिमान में नदी में चला । पहले ही कदम पर वह डुबकी खा गया । किसी तरह शिष्यों ने उसे बचाया ।
उसने शिष्य से पूछा कि यह मामला क्या है । तुम पानी में चल पडे और मैं खुद डूब गया । गुरु की वाते सुनकर वह शिष्य हंसने लगा । उसने कहा -"मुझे आप पर श्रद्धा है । आपको अपने आप पर ना श्रद्धा है ना विश्वास है । हमे मुश्किल राहों में वचाने वाली हमारी अपनी श्रद्धा ही है । अपना विश्वास ही वचाता है ।
जिन पर हमे श्रद्धा है । उनमें कुछ भी न हो । फिर भी वह श्रद्धा हमे बचा लेती है । कभी ऐसा भी हो जाता है कि जिन पर हमे श्रद्धा ही नही होती । वह महान है । उसके पास सब कुछ है । फीर भी हम डुव जाते है । क्यों के हम में श्रद्धा थी ही नही । अश्रद्धा ही हमे डुबो देती है । कभी बुद्ध पर भी लोगों ने संदेह करा । तो वह डूब गए । और कभी पाखंडियों के उपर लोगों ने श्रद्धा की और मंजिल तक पहुंच गए ।
परमात्मा तक तुमे गुरु नहीं पहुचाता । तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा विश्वास तुमे पहुंचाता है । यदी कोई सच्चा गुरु है तो वह तुम्हारी श्रद्धा ही है। श्रद्धा से वडा ना कोई गुरु है । ना कभी कोई हो सकता है । और जहा, जीस पर श्रद्धा की आंख पड़ जाए वहीं गुरु पैदा हो जाता है । परमात्मा हमे कही पहुंचाता है तो हमारी प्रार्थना ही पहुंचाती है ।
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