सर्वतपालनहार

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सर्वतपालनहार*💐

द्रौपदी के स्वयंवर में जाते समय
*श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि, हे पार्थ तराजू पर पैर संभलकर रखना, संतुलन बनाये रखना, लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो इस बात का विशेष ध्यान रखना...*

तब अर्जुन ने कहा,
*"हे प्रभु " यदि सबकुछ मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे, ?*

वासुदेव हंसते हुए बोले, हे पार्थ -
*जो तुमसे नहीं होगा वही मैं करुंगा..।*

पार्थ ने कहा प्रभु-
*ऐसा क्या है, जो मैं नहीं कर सकता ?*

तब वासुदेव ने मुस्कुराते हुए कहा - *जिस अस्थिर, विचलित, हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे, उस विचलित "पानी" को "मैं" ही स्थिर रखूँगा !!*

कहने का तात्पर्य यह है कि - *आप चाहे कितने ही निपुण क्यों ना हों, कितने ही बुद्धिमान क्यूँ ना हों, कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यों ना हों, लेकिन आप स्वंय हर एक परिस्थिति पर पूर्ण नियंत्रण नहीं रख सकते ..*

*आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हो, लेकिन उसकी भी एक सीमा है और जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभालता है उस ही का नाम ईश्वर है ।*

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*जो प्राप्त है-पर्याप्त है !!!*🌳
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