एक ओंकार सतनाम

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एक ओंकार सतनाम🕉

नानक कहते हैं, हुकम रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल।

जो लिखा है वह होगा। जो उसने लिख रखा है वही होगा। अपनी तरफ से कुछ भी करने का उपाय नहीं है। कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। फिर चिंता किसको? फिर बोझ किसको? जब तुम बदलना ही नहीं चाहते कुछ, जब तुम उससे राजी हो, उसका मर्जी में राजी हो, जब तुम्हारी अपनी कोई मजबूरी नहीं, तब कैसी बेचैनी! तब कै सा विचार! तब सब हलका हो जाता है। पंख लग जाते हैं। तुम उड़ सकते हो उस आकाश में, जिस आकाश का नाम है--इक ओंकार सतनाम। नानक की एक ही विधि है। और वह विधि है, परमात्मा की मर्जी। वह जैसा करवाए। वह जैसा रखे।

ऐसा हुआ कि बल्ख का एक नवाब था , इब्राहिम। उसने बाजार में से एक गुलाम खरीदा। गुलाम बड़ा स्वस्थ, तेजस्वी था। इब्राहिम उसे घर लाया। इब्राहिम उसके प्रेम में पड़ गया। आदमी बड़ा प्रभावशाली था। इब्राहिम ने पूछा कि तू कैसे रहना पसंद करेगा? तो उस गुलाम ने मुस्कुरा कर कहा, मालिक की जो मर्जी। मेरा कै सा, मेरे होने का कैसा अर्थ आप जैसा रखेंगे वैसा रहूंगा। इब्राहिम ने पूछा  , तू क्या पहनना, क्या खाना पसंद करता है? उसने कहा, मेरा क्या पसंद? मालिक  जैसा पहनाए, पहनूंगा। मालिक  जो खिलाए, खाऊं गा। इब्राहिम ने पूछा कि तेरा नाम क्या है? हम क्या नाम ले कर तुझे पुकारें? उसने कहा, मालिक  की जो मर्जी। मेरा क्या नाम? दास का कोई नाम होता है? जो नाम आप दे दें।
कहते हैं इब्राहिम के जीवन में क्रांति घट गई। उठ कर उसने पैर छुए इस गुलाम के और कहा कि तूने मुझे राज बता दिया जिसकी में तलाश में था। अब यही मेरा और मेरे मालिक  का नाता। तू मेरा गुरू है। तब से इब्राहिम शांत हो गया। जो बहुत दिनों के ध्यान से न हुआ था, जो बहुत दिन नमाज पढऩे से न हुआ था , वह इस गुलाम के सूत्र से मिल गया।
हुकम रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल
सोचो, थोड़ा प्रयोग करो। जैसा रखे, रहो। अपनी तरफ से तुमने बहुत कोशिश करके भी देख ली , क्या हुआ? तुम वैसे के वैसे हो। जैसा उसने भेजा था उससे विकृत भला हो गए हो, उससे सुकृत नहीं हुए हो। जैसे आए थे बचपन में भोले-भाले, उतना भी नहीं बचा हाथ में। स्लेट गंदी हो गई है, तुमने सब लिख डाला। पाया क्या है? सिवाय दुख , तनाव, संताप के क्या तुम्हारे हाथ लगा है? थोड़े दिन नानक की सुन कर देखो। छोड़ दो उस पर।

इसलिए नानक कहते हैं, न जप, न तप, न ध्यान, न धारणा। एक ही साधना है--उसकी मर्जी। जैसे ही तुम्हें खयाल आएगा उसकी मर्जी का, तुम पाओगे भीतर सब हलका हो जाता है। एक गहन शांति, एक वर्षा होने लगती है भीतर, जहां कोई तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं।
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ओशो- एक ओंकार सतनाम🕉💓🙏🙏

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