अविद्या

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🤔 *अविद्या* 🤔
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एक बार राजा ने अपने मंत्री से पूछा की यह बौद्ध शब्द ‘अविद्या’ का क्या मतलब होता है ?

मंत्री ने बोला कि आप मुझे 4 दिनकी छुट्टी दे दो फिर मैं आपको बताऊंगा !

राजा राजी हो गया और उसने चार दिनों की छुट्टी दे दी !

मंत्री मोची के पास गया और बोला कि भाई जूती बना दो,मोची ने नाप पूछी तो मंत्री ने बोला भैया ये नाप वाप कुछ नहीं। डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी बना दो,और इसमें हीरे जवाहरात जड देना । सोने और चांदी के तारों से सिलाई कर देना और हाँ पैसे वैसे चिंता मत करना जितना मांगोगे उतना मिलेगा।

तो मोची ने भी कहा ठीक है भैया तीसरे दिन ले लेना !

तीसरे दिन जूती मिली तब पेमेंट देने के पहले मंत्री ने उस मोची से एक ठोस आश्वासन ले लिया कि वह किसी भी हालात में इस जूती का किसी से भी कभी भी जिक्र नहीं करेगा यानि हर हालात में अनजान बना रहेगा ।

अब मंत्री ने एक जूती अपने पास रख लिया और दूसरी पूजास्थल में फेंक दिया। जब सुबह पुजारी पूजा के आया तो उसको वो जूती वहाँ पर मिली ।

पुजारी ने सोचा यह जूती किसी इंसान की तो हो ही नहीं सकती जरूर ईश्वर यहाँ आया होगा और उसकी छूट गई होगी।

तो उसने वह जूती अपने सर पर रखी, मत्थे में लगाई पूजा की और खूब जूती को चूमा ।

क्यों ?

क्योंकि वह जूती ईश्वर का था ना ।

वहां मौजूद सभी लोगों को दिखाया सब लोग बोलने लगे कि हां भाई यह जूती तो ईश्वर की रह गई उन्होंने भी उसको सर पर रखा और खूब चूमा।

यह बात राजा तक गई।

राजा ने बोला, मुझे भी दिखाओ ।

राजा ने देखा और बोला यह तो ईश्वर की ही जूती है।

उसने भी उसे खूब चूमा, सर पर रखा और बोला इसे पूजास्थल में ही अच्छी तरह अच्छे स्थान पर रख दो !

मंत्री की छुट्टी समाप्त हुई, वह आया बादशाह को सलाम ठोका और उतरा हुआ मुंह लेकर खड़ा हो गया।

अब राजा ने मंत्री से पूछा कि क्या हो गया मुँह क्यों बना रखा है।

तो मंत्री ने कहा राजासाहब हमारे यहां चोरी हो गई ।

राजा बोला – क्या चोरी हो गया ?

मंत्री ने उत्तर दिया – हमारे परदादा की जूती थी चोर एक जूती उठा ले गया । एक बची हैः

राजा ने पूछा कि क्या एक जूती तुम्हारे पास ही है ?

मंत्री ने कहा – जी मेरे पास ही है ।उसने वह जूती राजा को दिखाई । राजा का माथा ठनका और उसने पूजास्थल से दूसरी जूती मंगाई और बोला या ईश्वर मैंने तो सोचा कि यह जूती ईश्वर की है मैंने तो इसे चाट चूम के चिकनी बना डाली

मंत्री ने कहा राजा साहब यही है ‘अविद्या’ ।

यह कहानी कई मतों, संप्रदाय धर्मों पर बिल्कुल सही बैठती है ।

पता कुछ भी नहीं और भेड़ चाल में चले जा रहे है।

अविद्या का मतलब है अपना दिमाग लगाए बिना सोचे समझे बिना मान लेना, न जानने न सोचने न समझने की अवस्था ही अविद्या है।
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