एक बार स्वामीजी भिक्षा
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Night story 🌹🌹🌹
एक बार स्वामीजी भिक्षा
माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उ न्होंने आवाज लगायी , ।
घर से महिला बाहर आयी । उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा , महात्माजी ! कोई उपदेश दीजिये । स्वामीजी बोले , आज नहीं , कल दूँगा ।
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी , जय जय हो ।
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायी थी । जिसमें बादाम - पिस्ते भी डाले थे । वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी । स्वामीजी ने अपना कमंडल आगे कर दिया । वह स्त्री जब खीर डालने लगी , तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है ।
उसके हाथ ठिठक गये । वह बोली , महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है । स्वामीजी बोले , हाँ ! गन्दा तो है , किन्तु खीर इसमें डाल दो ।
स्त्री बोली , नहीं महाराज ! तब तो खीर ख़राब हो जायेगी । दीजिये यह कमंडल , मैं इसे शुद्ध कर लाती हूँ । स्वामीजी बोले , मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा , तभी खीर डालोगी न ? स्त्री ने कहा , जी महाराज । स्वामीजी बोले , मेरा भी यही उपदेश है । मन में जब तक चिन्ताओं का कूड़ा - कचरा और बुरे - संस्कारों का गोबर भरा है ।
तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा । यदि उपदेशामृत पान करना है , तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिये । कुसंस्कारों का त्याग करना चाहिये । तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी ।
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एक बार स्वामीजी भिक्षा
माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उ न्होंने आवाज लगायी , ।
घर से महिला बाहर आयी । उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा , महात्माजी ! कोई उपदेश दीजिये । स्वामीजी बोले , आज नहीं , कल दूँगा ।
दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी , जय जय हो ।
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायी थी । जिसमें बादाम - पिस्ते भी डाले थे । वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी । स्वामीजी ने अपना कमंडल आगे कर दिया । वह स्त्री जब खीर डालने लगी , तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है ।
उसके हाथ ठिठक गये । वह बोली , महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है । स्वामीजी बोले , हाँ ! गन्दा तो है , किन्तु खीर इसमें डाल दो ।
स्त्री बोली , नहीं महाराज ! तब तो खीर ख़राब हो जायेगी । दीजिये यह कमंडल , मैं इसे शुद्ध कर लाती हूँ । स्वामीजी बोले , मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा , तभी खीर डालोगी न ? स्त्री ने कहा , जी महाराज । स्वामीजी बोले , मेरा भी यही उपदेश है । मन में जब तक चिन्ताओं का कूड़ा - कचरा और बुरे - संस्कारों का गोबर भरा है ।
तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा । यदि उपदेशामृत पान करना है , तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिये । कुसंस्कारों का त्याग करना चाहिये । तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी ।
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