शिवरात्रि - महानतम पर्व 1
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🇲🇰प्रेरणादायी कहानियाँ🇲🇰
✳शिवरात्रि - महानतम पर्व✳
(भाग-1)
काल-चक्र घूमता जाता है, केवल स्मृति रह जाती है. उसी स्मृति को पुनः ताज़ा करने के लिए यादगारें बनाई जाती हैं; कथाएँ लिखी जाती हैं; जन्म-दिवस मनाए जाते हैं; जिनमें श्रद्धा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना का पुट होता है. परंतु एक दिन वह भी आ जाता है, जबकि श्रद्धा और स्नेह का अंत हो जाता है और रह जाती है केवल परंपरा. यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आज पर्व भी उसी परंपरा को निभाने मात्र मनाए जाते हैं. भारतवर्ष एक अध्यात्म-प्रधान देश है और जितने पर्व भारत में मनाए जाते हैं शायद ही उतने पर्व अन्य किसी देश में मनाए जाते हों. समय प्रति समय ये त्योहार उन्हीं छिपी हुई आध्यात्मिकता की रश्मियों को जागृत करते हैं. शिवरात्रि भी उन विशिष्ट त्योहारों में मुख्य स्थान रखता है.
✳शिव कौन हैं❓
उसने क्या किया और कब किया❓
यदि यह जानते होते तो यह शिवरात्रि का उत्सव केवल पूजा-पाठ का विषय नहीं रह जाता तथा दिनोंदिन बढ़ती हुई उच्छ्रखलता, अराजकता, अनुशासनहीनता, कलह-क्लेश, वर्ग-संघर्ष, दुख-अशांति तथा बढ़ती हुई समस्याओं का समाधान कर चुका होता.
❇महाशिवरात्रि का नाम जैसा महान है वैसे ही यह महानतम पर्व हम समस्त संसार की आत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव की स्मृति दिलाता है. भारतवर्ष में भगवान शिव के लाखों मंदिर पाए जाते हैं और शायद ही ऐसा कोई मंदिर हो जहाँ शिवलिंग की प्रतिमा नहीं हो. शायद ही ऐसा कोई धर्म ग्रंथ हो जिसमें शिव का गायन न हो, परंतु फिर भी शिव के परिचय से सर्व मनुष्यात्माएँ अपरिचित हैं. भारत के कोने-कोने में निराकार परमपिता परमात्मा ज्योति बिंदु शिव की आराधना भिन्न-भिन्न नामों से की जाती है. उदाहरणार्थ - अमरनाथ, विश्वनाथ, सोमनाथ, बबूलनत्, पशुपतिनाथ भगवान शिव के ही तो मंदिर हैं. वास्तव में कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी के इष्ट परमात्मा शिव ही हैं. गोपेश्वर एएवं रामेशवरम जैसे विशाल मंदिर आज दिन तक इसके साक्षी स्वरूप विद्यमान हैं. भारत से बाहर विश्व पिता शिव का मक्का में 'संग-ए-अस्वद', मिस्त्र में 'ऑसिरिज़' की आराधना, बेबीलोन में 'शिअन' नाम से पूजा व सम्मान इसी बात का धोतक है.
इन उदाहरणों से स्पष्ट है की परमपिता परमात्मा शिव ने अवश्य कोई महान कर्तव्य अथवा कार्य किया होगा.
❇शिवरात्रि क्यों मनाते हैं❓
शिव जयंती निराकार परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अलौकिक जन्म का स्मरण दिवस है. हम इस संसार में जिस किसी का भी जन्मोत्सव मानते हैं उसे जन्मदिवस कहते हैं. यदि रात्रि के बारह बजे भी कोई जन्म होता है तो भी उसके जन्मोत्सव को जन्म-रात्रि के रूप में नहीं वरण जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं.
❓तो प्रश्न उठता है कि शिव के जन्म-दिवस को शिवरात्रि क्यों कहते हैं❓
🌚'रात्रि' शब्द इस अंधकार का वाचक नहीं जो पृथ्वी के सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने से चौबीस घंटे में एक बार आता है. वरन अध्यात्मिक दृष्टिकोण से यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट है कि फाल्गुन मास की प्रायः अन्तिम अंधेरी रात होने के कारण वस्तुतः कल्प के अंत के समय व्याप्त घोर अज्ञान अंधकार छाया होता है;, काम, मरोध आदि विकारों के वशीभूत मानव दुखी और अशांत हो जाते हैं; धर्म, अधर्म का रूप ले लेते है, भ्रष्टाचार का बोल-बाला होता है तब ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव अज्ञान अंधेर विनाश के लिए प्रकट होते हैं और ज्ञान रूपी ऊषा की लालिमा अज्ञान रूपी कालिमा पर छा कर रात को दिन में परिवर्तित कर देती है. विकारी, अपवित्र दुनिया को निर्विकारी पावन दुनिया बनाना, वेश्यालय को सच्चा-सच्चा शिवालय बनाना, कलिययुग दुखधाम के बदले सतयुग सुखधाम की स्थापना करना केवल सर्व समर्थ परमपिता परमात्मा शिव का ही कार्य है. अब कल्प के वर्तमान संगम युग में अवतरित होकर फिर से वही कर्तव्य परमपिता परमात्मा शिव कर रहे हैं.
(क्रमशः)
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💓 से ॐ शान्ति 🌹
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✳शिवरात्रि - महानतम पर्व✳
(भाग-1)
काल-चक्र घूमता जाता है, केवल स्मृति रह जाती है. उसी स्मृति को पुनः ताज़ा करने के लिए यादगारें बनाई जाती हैं; कथाएँ लिखी जाती हैं; जन्म-दिवस मनाए जाते हैं; जिनमें श्रद्धा, प्रेम, स्नेह, सद्भावना का पुट होता है. परंतु एक दिन वह भी आ जाता है, जबकि श्रद्धा और स्नेह का अंत हो जाता है और रह जाती है केवल परंपरा. यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आज पर्व भी उसी परंपरा को निभाने मात्र मनाए जाते हैं. भारतवर्ष एक अध्यात्म-प्रधान देश है और जितने पर्व भारत में मनाए जाते हैं शायद ही उतने पर्व अन्य किसी देश में मनाए जाते हों. समय प्रति समय ये त्योहार उन्हीं छिपी हुई आध्यात्मिकता की रश्मियों को जागृत करते हैं. शिवरात्रि भी उन विशिष्ट त्योहारों में मुख्य स्थान रखता है.
✳शिव कौन हैं❓
उसने क्या किया और कब किया❓
यदि यह जानते होते तो यह शिवरात्रि का उत्सव केवल पूजा-पाठ का विषय नहीं रह जाता तथा दिनोंदिन बढ़ती हुई उच्छ्रखलता, अराजकता, अनुशासनहीनता, कलह-क्लेश, वर्ग-संघर्ष, दुख-अशांति तथा बढ़ती हुई समस्याओं का समाधान कर चुका होता.
❇महाशिवरात्रि का नाम जैसा महान है वैसे ही यह महानतम पर्व हम समस्त संसार की आत्माओं के परमपिता परमात्मा शिव की स्मृति दिलाता है. भारतवर्ष में भगवान शिव के लाखों मंदिर पाए जाते हैं और शायद ही ऐसा कोई मंदिर हो जहाँ शिवलिंग की प्रतिमा नहीं हो. शायद ही ऐसा कोई धर्म ग्रंथ हो जिसमें शिव का गायन न हो, परंतु फिर भी शिव के परिचय से सर्व मनुष्यात्माएँ अपरिचित हैं. भारत के कोने-कोने में निराकार परमपिता परमात्मा ज्योति बिंदु शिव की आराधना भिन्न-भिन्न नामों से की जाती है. उदाहरणार्थ - अमरनाथ, विश्वनाथ, सोमनाथ, बबूलनत्, पशुपतिनाथ भगवान शिव के ही तो मंदिर हैं. वास्तव में कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी के इष्ट परमात्मा शिव ही हैं. गोपेश्वर एएवं रामेशवरम जैसे विशाल मंदिर आज दिन तक इसके साक्षी स्वरूप विद्यमान हैं. भारत से बाहर विश्व पिता शिव का मक्का में 'संग-ए-अस्वद', मिस्त्र में 'ऑसिरिज़' की आराधना, बेबीलोन में 'शिअन' नाम से पूजा व सम्मान इसी बात का धोतक है.
इन उदाहरणों से स्पष्ट है की परमपिता परमात्मा शिव ने अवश्य कोई महान कर्तव्य अथवा कार्य किया होगा.
❇शिवरात्रि क्यों मनाते हैं❓
शिव जयंती निराकार परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अलौकिक जन्म का स्मरण दिवस है. हम इस संसार में जिस किसी का भी जन्मोत्सव मानते हैं उसे जन्मदिवस कहते हैं. यदि रात्रि के बारह बजे भी कोई जन्म होता है तो भी उसके जन्मोत्सव को जन्म-रात्रि के रूप में नहीं वरण जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं.
❓तो प्रश्न उठता है कि शिव के जन्म-दिवस को शिवरात्रि क्यों कहते हैं❓
🌚'रात्रि' शब्द इस अंधकार का वाचक नहीं जो पृथ्वी के सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने से चौबीस घंटे में एक बार आता है. वरन अध्यात्मिक दृष्टिकोण से यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट है कि फाल्गुन मास की प्रायः अन्तिम अंधेरी रात होने के कारण वस्तुतः कल्प के अंत के समय व्याप्त घोर अज्ञान अंधकार छाया होता है;, काम, मरोध आदि विकारों के वशीभूत मानव दुखी और अशांत हो जाते हैं; धर्म, अधर्म का रूप ले लेते है, भ्रष्टाचार का बोल-बाला होता है तब ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव अज्ञान अंधेर विनाश के लिए प्रकट होते हैं और ज्ञान रूपी ऊषा की लालिमा अज्ञान रूपी कालिमा पर छा कर रात को दिन में परिवर्तित कर देती है. विकारी, अपवित्र दुनिया को निर्विकारी पावन दुनिया बनाना, वेश्यालय को सच्चा-सच्चा शिवालय बनाना, कलिययुग दुखधाम के बदले सतयुग सुखधाम की स्थापना करना केवल सर्व समर्थ परमपिता परमात्मा शिव का ही कार्य है. अब कल्प के वर्तमान संगम युग में अवतरित होकर फिर से वही कर्तव्य परमपिता परमात्मा शिव कर रहे हैं.
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