शिवरात्रि - महानतम पर्व 2

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      ❇शिवरात्रि - महानतम पर्व ❇

(भाग - 2)
चूंकि वह है अजन्मा अर्थात अन्य आत्माओं के सदृश्य माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं और उन्हें पुनः दैवी राज्य की स्थापना का कर्तव्य भी करना है, वे इस कर्तव्य की पूर्ति हेतु परकाया प्रवेश करते हैं अर्थात ‘स्वयं-भू’ परमात्मा शिव प्रकृति को वश में कर के साधारण वृद्ध तन में प्रविष्ट होते हैं और फिर उस तन का नाम रखते हैं ‘ प्रजापिता ब्रह्मा’। प्रजापिता ब्रह्मा के साकार माध्यम द्वारा वे ज्ञान यज्ञ रचते हैं जिसमें सारी आसुरी सृष्टि की आहुति पड़ जाती है।
शिवलिंग के अतिरिक्त जटाधारी तपस्वीमूर्त, गले में सर्प धारण किए हुए एक देव प्रतिमा भी देखने में आती है जिन्हें शंकर नाम से जाना जाता है। यह जानना नितांत आवश्यक होगा कि शिव और शंकर में कर्तव्यों के आधार पर महान अंतर है। परमपिता परमात्मा जिन्हें निराकार व ज्योति बिन्दु भी कहा जाता है, का प्रतीक शिवलिंग है जबकि शंकर प्रकाशमय आकारी देवता है । शिव योगेश्वर है – शंकर योगीमूर्ति हैं। शिव रचयिता हैं- शंकर रचना हैं। शिव पिता हैं – शंकर उनके पुत्र हैं। हम शिवरात्रि मना रहे हैं न कि शंकर-रात्रि । त्रुटि केवल दोनों के नाम जोड़ देने से हुई है।

🏮शिवरात्रि से संबन्धित कुछ रस्म-रिवाजों का रहस्य:

चूंकि परमपिता परमात्मा शिव बिन्दु रूप हैं  इसलिए भक्तजन विशाल शिवलिंग बनाते हैं, उस पर पानी मिश्रित दूध (लस्सी), बेल–पत्ते, फूल और वह भी अक चढ़ाते हैं। शरीर की  स्वच्छता के लिए दिन में कई बार स्नान करते हैं और साथ ही प्रायः जागरण करते तथा व्रत भी रखते हैं। यह कैसी नियति है कि समयान्तर से धारण योग्य बातों ने कर्म-काण्ड का रूप धारण कर लिया है। लस्सी चढ़ाने की क्रिया वह भी धीरे-धीरे आत्मा का ध्यान परमात्मा की ओर आकर्षित एवं एकाग्र करने के समान है। बेल का चढ़ाना आत्मा अथवा सालिग्राम का प्रतीक है जिसका अर्थ है कि  हम आत्माएँ परमात्मा पर बलि चढ़ें अर्थात उन्हीं द्वारा बताए मार्ग का अनुकरण करें। अक के फूल एवं धतूरा चढ़ाने का रहस्य यह है कि अपने विकारों को उन्हें देकर निर्विकारी बन पवित्रता के व्रत का पालन करें। शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ आत्मिक स्वच्छता धारण करें। भांग आदि नशीली वस्तुओं का उपयोग तो इस पुनीत पर्व को कलुषित करता है। वास्तव में यह बताता है कि त्रिमूर्ति शिव से सतयुगी दुनिया में हमें जो नारायण समान देव पद प्राप्त होता है उसी नारायणी नशे में रहें ताकि सच्ची- सच्ची मन की शांति तथा अतींद्रिय सुख का अनुभव हो सके। शिव की बारात का भी विशेष महत्व है। परमपिता परमात्मा शिव संसार की समस्त आत्माओं को पवित्र बनाकर उनके पथ-प्रदर्शक बन कर परमधाम वापिस ले जाते हैं, इसलिए उन्हें आशुतोष व भोलानाथ भी कहते हैं। क्योंकि वह शीघ्र ही वरदान देने वाले व प्रसन्न होने वाले हैं। जिस व्रत से परमात्मा प्रसन्न होते हैं वह है ब्रह्मचर्य व्रत। यही सच्चा उपवास है क्योंकि इसके पालन से मनुष्यात्मा को परमात्मा का सामीप्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार एक रात जागरण करने से अविनाशी प्राप्ति नही होती। परंतु, अब तो कलियुगी रूपी महारात्रि चल रही है उसमें आत्मा को ज्ञान द्वारा जागृत करना ही जागरण है। इस जागरण द्वारा ही मुक्ति, जीवनमुक्ति मिलती है।

           🏮शिव सर्वात्माओं के परमपिता हैं:🏮

👰🏼हमारा यह विश्वास है कि यदि सभी को शिवरात्रि का, परमपिता परमात्मा शिव का परिचय दिया जाये तो सभी संप्रदायों को एक सूत्र में बांधा जा सकता है क्योंकि परमपिता परमात्मा शिव का स्मृति चिन्ह शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्व धर्मावलम्बियों द्वारा मान्य है। यद्यपि मुसलमान मूर्ति पूजा का खण्डन करते हैं तथापि मक्का में ‘ संग-ए-असवद’ नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं क्योंकि उनका यह दृढ़ विश्वास है कि यह पत्थर भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें मालूम पड़  जाये कि भारतवासी खुदा अथवा भगवान को शिव मानते हैं तो दोनों धर्मों में भावनात्मक एकता हो सकती है।

❇इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट (सुसमाचार) में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया है वह ज्योति बिन्दु परमात्मा ही है। इस प्रकार राष्ट्रों के बीच मैत्री भावना बन सकेगी तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकता बन सकेगी।

|🇮🇳भारतवासियों को यदि यह मालूम होता कि शिवलिंग स्वयं परमपिता की प्रतिमा है तो  इस देश में वैष्णवों तथा शैवों में जो झगड़े चले आये हैं तथा परमात्मा के स्वरूप के बारे में जो भिन्न- भिन्न विचार चले आये हैं वे न होते और सभी ईश्वरोन्मुख होते और कल्याण के भागी होते। रामेश्वर में राम के भी ईश्वर शिव से, इसी प्रकार वृंदावन में कृष्ण के इष्ट गोपेश्वर तथा एलिफैण्टा में त्रिमूर्ति शिव के चित्र से स्पष्ट है कि सब धर्मों को एक सूत्र में बांधने वाला परमपिता परमपिता शिव ही है। शिवरात्रि का त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्म वालों के लिए भारत वर्ष तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता तो विश्व का इतिहास ही कुछ और होता तथा सांप्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जाति-भेद नहीं होते। चहुं ओर भ्रातृत्व- भावना होती।                                                           
            ✳आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है। जब मानव समाज पतन की चरम सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश सुनाते हुए अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि इस समय संगम-युग पर ज्ञान सागर, प्रेम, करुणा के सागर, पतित पावन, स्वयं-भू, परमात्मा शिव हम जीवात्माओं की  बुझी ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो चुके हैं और साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से छुड़ा कर निर्विकारी पावन देवपद की प्राप्ति करा कर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।


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💓 से ॐ शान्ति 🌹

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