विषय: निराकार परमात्मा का परिचय होने कि अत्यावश्यकता.

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*विषय: निराकार परमात्मा का परिचय होने कि अत्यावश्यकता.*

आजकल हम रामायण मालिका टीव्ही पर देख रहे है और कल रामनवमी भी थी.

इसे बहाने बहुतजन बच्चे भी श्रीरामजी को याद कर रहे है.

हम मनन चिंतन कर रहे थें कि मनुष्य जब किसींको याद करता है तो पहले उसकी *प्रतिमा/स्वरूप* उसके सामने आ जाती है.

इसका मतलब असल मे जादातर लोगोंके सामने और बहुतसे बच्चे के सामने तो श्रीराम स्वरूप मे *श्री. अरुण गोविल जी की प्रतिमा सामने आयेगी.* अर्थात भक्ती एवं श्रद्धा मे तो इससे कुछ भी फरक नही पडता. 

परंतु जब हम इसे *सूक्ष्म स्तर* मन बुद्धी द्वारा आत्मा कि तरंग (vibrations) की बात करते है तब यह मॅटर करता है कि हमारा connection कितना स्ट्रॉंग और सही जगह पर पहूंच रहा है. जैसे की सूर्य के प्रकाश मे कागज के उपर भिंग कैसे भी पकडणे से कागज जलेगा नही. परंतु उस भिंग को एक सही अँगल मे स्थिर पकडना होगा.

फिर साकार परमात्मा के परिचय/ व्याख्या मे तो लोगोंके अगणित मत मतांतर है. 
भक्तीयोग कि दृष्टीसे तो रूप का महत्व मायने नहीं रहता है. विष्णू जी को राम, विठ्ठल इ इ कोई भी स्वरूप मे याद किया जा सकता है. परंतु यह स्थिती (निसंधिग्ध अटल श्रद्धा) निर्माण होने के लिये बहुत अभ्यास जरुरी है, छोटे बच्चे के लिये मुस्किल है. बहुतसे बच्चे तो बुढे होने तक
अंधश्रद्धा मे ही जीवन जितें है.  

इसलीये हमारा दिलसे यह मत है कि क्यो न बचपन से  ही हम निराकार परमात्मा *एक ज्योतीबिंदू* कि पहचान/प्रतिमा स्मृतीपटल मे भर दे.

इसके साथ साथ परमात्मा सत्य एवं पूर्ण परिचय जैसे आकार/स्वरूप, नाम, कर्तव्य, निवासस्थान, गुण इ निसंधिग्ध होना अत्यावश्यक है. जीससे *सबका मालिक एक* की भी श्रद्धा साध्य होगी. आदी सनातन/मनुष्य देवी देवता धर्म का प्रचार बढेगा.

कर्मकांड से जादा महत्व मनुष्य के श्रेष्ठ विचार एवं आचार मे होगा. क्योकीं समय के अनुसार पूजा-पाठ इ. के पिछे जो कल्याणकारी भाव एवं हेतू (intention) अधिक स्पष्ट हो जायेगा. विज्ञानवादी एवं अध्यात्मवादी मे एकता/समन्वय बढेगी.

 अंधश्रद्धा को भी कम करने का यही एकमात्र उपाय हो सकता है.

आस्तिक और नास्तिक शब्द का प्रयोग कि आवश्यकता नही रहेगी.

*भक्तीमार्ग का स्नेह और ज्ञानमार्ग के वैज्ञानिक दृष्टी से भारत पुनः विश्वगुरू बन जायेगा.*
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👏यह लेख केवल चिंतन से शब्द बद्ध किया है इसे शास्त्रीय आधार नही है. लेख का कल्याणकारी उद्देश रक्षा करते हुवे संशोधन/सुधार जरूर किया जा सकता है.🙏

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