एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं

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एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई, तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।
 राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया।
राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।
विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।
पहले ही दिन कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं ?
संन्यासी ने जवाब दिया कि- ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे।
संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी, राजकुमारी ने कहा- कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगा कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप केवल भक्ति करते हैं... भजन, कीर्तन करते हैं और कल की चिंता करते ही नहीं हैं।
पर स्वामी! मैं जितना जानती हुं की- सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता कदापि नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। सर्वसमर्पण करता है।
अगले दिन की चिंता तो पशु भी नहीं करते हैं, हम तो मनुष्य हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।
ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। वो नतमस्तक हो गया।
उसने राजकुमारी से कहा कि- आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं। जबकि मैं तो पहले से ही एक सन्यासी हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। केवल कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया। जो सारे संसार की पालनहार है,वो मेरा भी तो पालनहार है। 

अगर हम सतगुरु की भक्ति करते हैं, तो विश्वास भी होना चाहिए कि सतगुरु हर समय हमारे साथ हैं। सतगुरु को हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती है। 

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जय हो सद्गुरू सरकार की 🌹🌹🌹🌹🙌🙌🙌🙏🙏🙏

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