किसी भी वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ के परिवर्तन का

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किसी भी वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ के परिवर्तन का आधार संग होता है । जिसको जैसा संग मिल जाता है वह उसी रंग में परिवर्तित हो जाता है । एक भाई का जीवन बुराइयों से घिरा हुआ था । कक्षा में बैठकर सिगरेट पीना, मारपीट करना, स्कूल छोड़ फिल्में देखना उसकी आदत बन गई थी । उसकी इन शरारतों से सब परेशान रहते थे । पढ़ाई में मन न लगने के कारण उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी । बुराइयों के मार्ग पर आगे बढ़ते बढ़ते उसे वैसे ही साथी भी मिलते गए । इन्हीं चकरों में उसे दो बार जेल भी जाना पड़ा । मां बाप परेशान हो उठे । वह भी अपनी आदतों से सुखी नहीं था ।

पूर्व का संचित फल समझ लीजिए, एक दिन बाजार में उसके कानों में - सबका मालिक एक फिर क्यों बँटा हुआ है संसार - इस गीत की आवाज गूंजी जिसने उसे अंदर तक झकझोर दिया और सोचने लगा कि हम सब एक हैं तो मैं दूसरों पर अत्याचार क्यों करता हूँ । इसके बाद तो फिर उसे ईश्वरीय ज्ञान और योग का संग, पवित्र आत्माओं का संग मिलता गया और वह सात्विक मार्ग पर बढ़ चला ।

इसी तरह हम देखते हैं तो सतयुग से लेकर पुरुषोत्तम संगमयुग तक हम आत्माएं किसी न किसी संग के कारण परिवर्तित होती रही । जिसको जैसा संग मिलता जाता है उस पर वैसा ही रंग चढ़ता चला जाता है ।

अब हमें संगमयुग में परमात्मा पिता का साथ मिला है तो उनका रंग हमारे पर चढ़ने लगता है । सोने के आभूषण का परिवर्तन अग्नि से होता है वैसे ही आत्मा का परिवर्तन तब होता है जब परमात्मा पालना प्राप्त होती है । इससे हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है । हमारी दृष्टि देह से निकल आत्मा रूपी मोती पर पड़ती है । फिर सगे संबंधी आदि सभी आत्मिक रूप से भाई नजर आने लगते हैं । दिल करता है कि इन सभी को बुराइयों की दलदल से मुक्त करें । ज्ञान मार्ग में चलते-चलते आत्मा पर से जन्मो का मेल उतरता जाता है, आत्मा अपने अंदर अतींद्रिय सुख, शक्तियां और गुण भर लेती है । 

तो बाबा के संग का रंग ऐसा है जो 2500 वर्ष तक हम उसमें रंगे रहते हैं ।

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